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________________ ४६४ ] छक्खंडागमे वेयणाखंडं [४, २, ४, १८६. फद्दयपमाणाणुगमं कस्सामो । तं जहा- जहण्णफद्दयस्स आदिवग्गणायाममादिवग्गणवग्गेण गुणिय पुणो एगफद्दयवग्गणसलागाहिं चदुगुणेगगुणहाणिफद्दयसलागभागहीणाहि गुणिदे आदिफद्दयमागच्छदि । तं जहा- पढमफद्दयस्स आदिवग्गणायामे आदिवग्गेण गुणिदे पढमफद्दयआदिवग्गणा होदि । पुणो पढमवग्गणादो बिदियादिवग्गणाओ विसेसहीणाओ । केत्तियमेत्तेण १ सग-सगहेट्ठिमवग्गणायामेणूणगोवुच्छविसेसगुणिदसर्ग-सगवग्गमेत्तेण । [तेण] कारणेण पुव्वमाणिदपढमवग्गणाए एगफद्दयवग्गणसलागाहि गुणिदाए सादिरेयफद्दयमागच्छदि । केत्तियमेत्तेण सादिरेगं ? जहण्णवग्गगुणिदवग्गणविसेसादिउत्तररूवूणवग्गणसलागगच्छसंकलणाए। एदमवणिय पुणो एत्थ बिदियणिसेगादि उत्तररूवूणवग्गणसलागसंकलणाए गोवुच्छविसेससादिउत्तरदुरूवूणवग्गणसलागगच्छदुगुणसंकलणासंकलणूणियाए पक्खित्ताए जहण्णफद्दयमागच्छदि । एवं सव्वफद्दयाणं पमाणमाणेयव्वं जाव चरिमगुणहाणिचरिमफद्दएत्ति । एत्थ ताव पढमगुणहाणिफयाणं जोगाविभागपडिच्छेदमेलावणविहाणं वत्तइस्सामो । तं जहा- जहण्णफद्दयादिउत्तरगुणहाणिफद्दयसलागाणं है- जघन्य स्पर्धक सम्बन्धी प्रथम वर्गणाके आयामको प्रथम वर्गणाके वर्गले गुणित कर फिर उसे एक स्पर्धककी जितनी वर्गणाशलाकायें हैं उनमेंसे एक गुणहानिकी चौगुणी स्पर्धकशलाकाओंको कम कर देनेपर जितनी शेष रहे उनसे गुणित करने पर प्रथम स्पर्धकका प्रमाण आता है। वह इस प्रकारसे-प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके आयामको प्रथम वर्गसे गुणित करनेपर प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणा होती है। आगे प्रथम वर्गणासे द्वितीयादिक वर्गणायें विशेष हीन हैं। कितने मात्रसे अपनी अपनी अधस्तन वर्गणाके आयामसे रहित गोपुच्छविशेषसे गुणित अपने अपने वौका जितना प्रमाण हो उतने मात्रसे वे हीन हैं । इस कारण पूर्वमें लायी हुई प्रथम वर्गणाको एक स्पर्धककी वर्गणाशलाकाओंसे गुणित करनेपर साधिक स्पर्धकका प्रमाण आता है। कितने मात्रसे साधिक? जघन्य वर्गसे गुणित वर्गणाविशेषादि उत्तर एक कम वर्गणाशलाकाओंकी गच्छसंकलनासे वह साधिक है। इसको कम करके फिर इसमें गोपुच्छविशेषादि उत्तर दो रूपोंसे कम वर्गणाशलाकाओंके गच्छकी दुगुणी संकलना. संकलनासे हीन ऐसी द्वितीय निषेकादि उत्तर एक कम वर्गणाशलाकाओंकी संकलनाको मिला देनेपर जघन्य स्पर्धकका प्रमाण आता है। इस प्रकार अन्तिम गुणहानिके अन्तिम स्पर्धक तक सब स्पर्धकोंके प्रमाणको ले आना चाहिये। ___ यहां पहले प्रथम गुणहानिके स्पर्धकोंके योगाविभागप्रतिच्छेदोंके मिलानेके विधानको कहते हैं। वह इस प्रकार है- जघन्य स्पर्धकसे लेकर आगेकी गुणहानि ....................... १ प्रतिषु 'गुणिदे दवय ' इति पाठः । २ ताप्रतौ ' गोवुच्छाणिदविसेससग-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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