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________________ १, २, ४, १८५.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [४६१ 'धुवं मोत्तुं' णिच्छएण मुच्चा सोहिए त्ति जं वुत्तं होदि । सुद्धसेसमेत्ते 'ओजे' ओजफदए आदिवग्गणा होदि । भावत्थो- एक्कम्हि दोरूवे पक्खिविय पढमफद्दयादिवग्गणाए गुणिदाए बिदियओजफद्दयआदिवग्गणा होदि | २४ । कइत्यमेदं फद्दयमिदि वुत्ते पक्खेवसलागसहिदे धुवरूवे । ३ | आदि | १ | एदं 'मोत्तुं' णिच्छएण अवणिदे सेसं दोण्णि होंति | २|| बिदियस्स ओजफद्दयस्स आदिवग्गणा जादा त्ति सिद्धं । पुणो पुविल्लतिण्णं रूवाणमुवरि दोरूवेसु पक्खित्तेसु पंच होति |५|एदेहि आदिवग्गणं गुणिदे पंचमफद्दयस्स आदिवग्गणा होदि । ओजफद्दएसु कइत्थमेदमोजफद्दयमिदि वुत्ते वुच्चदे- एत्थ हेट्ठिमपुवमाणिय दृविददोओजफद्दयसलागाओ ति आदी होदि । एदासु पंचसु अवणिदासु सेसं तिण्णि होति, तदियस्स ओजफद्दयस्स आदिवग्गणा एसा त्ति तेण सिद्धं । पुणो पंचसु रुवेसु दोरूवपक्खेवे कदे सत्तै होति । एदेहि पढमफद्दयआदिवग्गणाए गुणिदाए सत्तमफद्दयस्स आदिवग्गणा होदि । तत्थ तिण्णिआदिमवणिदे सेसं चत्तारि होति, तदित्थओजफद्दयस्स प्रमाणको 'धुवं मोत्तुं' अर्थात् निश्चयसे घटा देनेपर जो शेष रहे उतने मात्र ओज स्पर्धककी वह आदि वर्गणा होती है। भावार्थ- एकमें दो अंकोंको मिलाकर उससे प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणाको गुणित करनेपर द्वितीय ओज स्पर्घककी प्रथम वर्गणा होती है [८४(२+१)=२४] । शंका- यह कितनेवां ओज स्पर्धक है ? समाधान - ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं कि प्रक्षेपशलाका सहित ध्रुव अंक (२+ १ = ३) मेंसे आदिका प्रमाण जो एक (१) है इसको निश्चयसे घटा देनेपर शेष दो (२) रहते हैं, अतः वह द्वितीय ओज स्पर्धककी प्रथम वर्गणा होती है, यह सिद्ध है। फिर पूर्वोक्त तीन अंकोंके ऊपर दो अंकोंके मिलानेपर पांच (५) होते हैं। इनसे प्रथम वर्गणाको गुणित करनेपर पांचवें स्पर्धककी आदि वर्गणा होती है। ओज स्पर्धकोंमें यह कौनसा ओज स्पर्धक है, ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि यहां अधस्तन पूर्वके ओज स्पर्धकोंको लाकर स्थापित दो ओजस्पर्धकशलाकायें 'आदि' होती हैं। इनको पांचमेंसे घटा देनेपर शेष तीन रहते हैं, अतः वह तृतीय ओज स्पर्धककी प्रथम वर्गणा है, यह सिद्ध है। फिर पांच अंकोंमें दो अंकोंका प्रक्षेप करनेपर सात होते हैं । इनसे प्रथम स्पर्धककी प्रथम वर्गणाको गुणित करनेपर सातवें स्पर्धककी प्रथम वर्गणा होती है। उसमें से 'आदि' स्वरूप तीनको घटानेपर शेष चार रहते हैं, अत एव वह चतुर्थ , आप्रतौ ' कहत्तमेदं ' इति पाठः। २ प्रतिषु 'ओजफद्दयआदिवग्गणा' इति पाठः। ३ अप्रतौ कदे मंते सह' इति पाठः। ४ ताप्रती सत्तफहयस्स' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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