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________________ १५०] छक्खंडागमे वेयणाखंड . [४, २, ४, १८१. केत्तियमेत्तेण १ पिदियवग्गणएगजीवपदेसाविभागपडिच्छेदे एगगोवुच्छविसेसेण गुणिय पुणो. तत्थ तदियगोवुच्छमवणिदे संते जं सेसं तत्तियमेत्तेण । एवं जाणिदूण णेदव्वं जाव पढमफहयचरिमवग्गणेत्ति । पुणो पढमफद्दयचरिमवग्गणाविभागपडिच्छेदेहितो बिदियफद्दयआदिवग्गणाए: जोगाविभागपडिच्छेदा किंचूणदुगुणमेत्ता । एत्थ कारणं चिंतिय वत्तव्यं । विदियफद्दयाम्म हेट्ठिमणतरादीदजोगपडिच्छेदेहितो उवरिमणंतरवग्गणाए जोगाविभागपडिच्छेदा विसेसहीणा । एवं गंतूण विदियफद्दयचरिमवग्गणाविभागपडिच्छेदेहितो तदियफहयपढमवग्गणाए अविभागपडिच्छेदा किंचूणदुभागब्भहिया । एवं उरि पि जाणिदण णेदव्वं। णवरि फद्दयाणमादिवग्गणाविभागपडिच्छेदा अणतरहेट्ठिमवग्गणाविभागपडिच्छेदेहितो तिभागभहिय-पंचभागब्भहियसरूवेण गच्छंति त्ति घेत्तव्वं ।। संपहि एत्थ एगजीवपदेसाविभागपडिच्छेदाणं वग्गो त्ति सण्णा, समाणजोगसव्वजीवपदेसाविभागपडिच्छेदाणं च वग्गणो त्ति सण्णा सिद्धा। ण च एत्थ सरिसधणियसव्वजीवपदेससमूहो चेव वग्गणा होदि त्ति एयंतो। किंतु दवट्टियणए अवलंबिज्जमाणे एगो वि तुता विशेष हीन हैं । कितने मात्र विशेषसे वे हीन हैं ? द्वितीय वर्गणा सम्बन्धी एक जीवप्रदेशके अविभागप्रतिच्छेदोंको एक गोपुच्छविशेषसे गुणित कर फिर उनमैसे । गोपुच्छको कम करनेपर जो शेष रहे उतने मात्रसे वे विशेष हीन है। इस प्रकार जानकर प्रथम स्पर्धककी चरम वर्गणा तक ले जाना चाहिये। पुनः प्रथम स्पर्धककी चरम वर्गणा सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेदोंसे द्वितीय स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके योगाविभागप्रतिच्छेद कुछ कम दुगुणे मात्र हैं। यहां कारण विचार कर कहना चाहिये । द्वितीय स्पर्धकमें नीचेकी अव्यवहित अतीत वर्गणाके योगाविभागप्रतिच्छेदोंसे उपरिम अव्यवहित वर्गणाके योगाविभागप्रतिच्छेद विशेष हीन हैं । इस प्रकार जाकर द्वितीय स्पर्धककी अन्तिम वर्गणा सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेदोंसे तृतीय स्पर्धककी प्रथम वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद कुछ कम द्वितीय भागसे अधिक हैं । इस प्रकार ऊपर भी. जानकर ले जाना चाहिये । विशेष इतना है कि स्पर्धकोंकी प्रथम वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेद उससे अव्यवहित अधस्तन वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदोंसे तृतीय भाग अधिक व पंचम भाग अधिक स्वरूपसे जाते हैं, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । अब यहां एक जीवप्रदेशके अविभागप्रतिच्छेदोंकी वर्ग यह संज्ञा, तथा समान योगवाले सब जीवप्रदेशोंके योगाविभागप्रतिच्छेदोंकी वर्गणा यह संज्ञा सिद्ध है । समान पनघाले सब. जीवप्रदेशोंका समूह ही वर्गणा हो, ऐसा यहां एकान्त नहीं है। किन्तु द्रव्यार्थिकनयका अवलम्बन करनेपर एक भी जीवप्रदेश वर्गणा होता है, अ-काप्रत्योः 'तिमागबंधिय' इति पाठः। २ अ-का-ताप्रतिषु पडिल्छेदाणं वग्गणा' इति पादः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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