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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, २, ४, १७५.
गुणजोगो णाम । जीव-भवियत्तादीहि जोगो पारिणामियगुणजोगो णाम । इंदो मेरुं चालइदु समत्यो त्ति एसो संभवजोगो णाम । जो सो जुंजणजोगो सो तिविदो- ववादोगो एतावविजोगो परिणामजोगो चेदि । एदेसु जोगेसु जुंजणजोगेण अहियारो, सेसजोगेर्हितो कम्मपदेसाणमागमणाभावादो ।
णाम- ट्ठवण- दव्व-भावभेदेण ट्ठाणं चदुव्विहं । णाम- ट्ठवणट्ठाणाणि सुगमाणित तेंसिमत्थों ण वुच्चदें । दव्वद्वाणं दुविहं आगम-णोआगमदव्वद्वाणभेदेणं । तत्थ आगमदो दव्वाणं द्वाणपाहुडजाणओ अणुवजुत्तो' | णोआगमदव्वद्वाणं तिविहं जाणुगसरीर-भवियतव्वदिरित्तट्ठाणभेण । तत्थ जाणुगसरीर भवियट्ठाणाणि सुगमाणि । तव्वदिरित्तदव्वद्वाणं तिविहूं' – सच्चित्त-अच्चित्त-मिस्सणोआगमदव्वद्वाणं चेदि । जं तं सच्चित्तणोआगमदष्वद्वाणं तं दुविहं बाहिरमब्भंतरं चेदि । जं तं बाहिरं तं दुविहं धुवमद्ध्रुवं चेदि । जं तं धुवं तं सिद्धाणमगाहट्ठाणं । कुदो ? तेसिमोगाहणाए वड्डि-हाणीणमभावेण थिरसरूवेण अवट्ठाणादो । जं तमद्ध्रुवं सच्चित्तट्ठाणं तं संसारत्थाण जीवाणमोगाहणा । कुदो ? तत्थ वड्डिहाणीमुवलंभादो । जं तमन्तरं सच्चित्तद्वाणं तं दुविहं संकोच विकचिणप्पयं तव्विहीणं चेदि ।
जीवत्व व भव्यत्व आदिके साथ होनेवाला योग पारिणामिक सचित्तगुणयोग कहलाता है । इन्द्र मेरु पर्वतको चलाने के लिये समर्थ है, इस प्रकारका जो शक्तिका योग है वह सम्भवयोग कहा जाता है। जो योजना- (मन, वचन व कायका व्यापार ) योग है वह तीन प्रकारका है— उपपादयोग, एकान्तानुवृद्धियोग और परिणामयोग । इन योगों में यहां योजनायोगका अधिकार है, क्योंकि, शेष योगों से कर्मप्रदेशोंका आगमन सम्भव नहीं है । नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे स्थान चार प्रकार है । इनमें नाम व स्थापना स्थान सुगम हैं, अत एव उनका अर्थ नहीं कहते । द्रव्य स्थान दो प्रकार है - आगमद्रव्यस्थान और नोआगमद्रव्यस्थान । उनमें स्थानप्राभृतका जानकार उपयोग रहित जीव आगमद्रव्यस्थान कहा जाता है । नोआगमद्रव्यस्थान ज्ञायकशरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त स्थान के भेद से तीन प्रकार है । उनमें ज्ञायकशरीर और भावी स्थान सुगम हैं । तद्व्यतिरिक्त द्रव्यस्थान तीन प्रकार है- सचित्त, अचित्त और मिश्र नोआगमद्रव्यस्थान । जो सचित्त नोआगमद्रव्यस्थान है वह दो प्रकार है- बाह्य और अभ्यन्तर । इनमें जो बाह्य है वह दो प्रकार है -- ध्रुव और अध्रुव । जो ध्रुव है वह सिद्धौका अवगाहनास्थान है, क्योंकि, वृद्धि और हानिका अभाव होनेसे उनकी अवगाहना स्थिर स्वरूपसे अवस्थित है । जो अध्रुव सचित्तस्थान है वह संसारी जीवोंकी अवगाहना है, क्योंकि, उसमें वृद्धि और हानि पायी जाती है । जो अभ्यन्तर सचित्तस्थान है वह दो प्रकार है- संकोच विकोचात्मक और तद्विहीन | इनमें जो
१ अ-आमत्यीः ' ट्ठवणभेदेण ' इति पाठः । २ अ-आ-काप्रतिषु ' णुवजुत्ता' इति पाठः । ३ आप्रता ' दव्वद्वाणं तव्वदिरितं तिविहं ' इति पाठः ।
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