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१३२] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४, १७५. क्कस्सजोगाणमप्पाबहुगं परूविदं तहा जोगकारणेण जीवस्स दुक्कमाणकम्मपदेसाणं पि अप्पाबहुगं परूविदव्वं, सव्वत्थ कारणाणुसारिकज्जुवलंभादो। जदि कारणाणुसारी चेव कज्ज होदि तो समयं पडि जोगवसेण ढुक्कमाणकम्मपदेसेहि असंखेज्जेहि होदव्वं, जोगम्मि असंखेज्जाणं अविभागपडिच्छेदाणमुवलंभादो त्ति वुत्ते - ण, एगजोगाविभागपडिच्छेदें वि अणतकम्मपदेसायड्वर्णसत्तिदसणादो। जोगादो कम्मपदेसाणमागमो होदि ति कधं णव्वदे ? एदम्हादो चेव पदेसअप्पाबहुगसुत्तादो णव्वदे। ण च पमाणंतरमवेक्खदे, अणवत्थापसंगादो। तेण गुणिदकम्मंसिओ तप्पाओग्गउक्कस्सजोगेहि चेव हिंडावेदव्वो, अण्णहा बहुपदेससंचयाणुववत्तीदो । खविदकम्मंसिओ वि तप्पाओग्गजहण्णजोगपंतीए खग्गधारसरिसीए पयट्टावेदव्यो, अण्णहा कम्म-णोकम्मपदेसाणं थोवत्ताणुववत्तीदो ।
जोगट्टाणपरूवणदाए तत्थ इमाणि दस अणियोगदाराणि णादव्वाणि भवंति ॥ १७५०
(एत्थ जोगो चउव्विहो- णामजोगो ठवणजोगो दव्वजोगो भावजोगो चेदि ) णाम
सर्वपरस्थानके भेदसे जघन्य व उत्कृष्ट योगोंके अल्पबहुत्यकी प्ररूपणा की गई है उसी प्रकार योगके निमित्तसे जीवके आनेवाले कर्मप्रदेशोंके भी अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करना चाहिये, क्योंकि, सब जगह कारण के अनुसार ही कार्य पाया जाता है ।
शंका-यदि कार्य कारणका अनुसरण करनेवाला ही होता है तो प्रतिसमय योगके वशसे आनेवाले कर्मप्रदेश असंख्यात होने चाहिये, क्योंकि, योगमें असंख्यात अविभागप्रतिच्छेद पाये जाते हैं ? ।
समाधान- नहीं, क्योंकि, योगके एक अविभागप्रतिच्छेदमें भी अनन्त कर्मप्रदेशोंके आकर्षणकी शक्ति देखी जाती है ।
शंका - योगसे कर्मप्रदेशोंका आगमन होता है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान- वह इसी प्रदेशाल्पबहुत्वसूत्रसे जाना जाता है, किसी अन्य प्रमाणकी अपेक्षा नहीं करता, क्योंकि, वैसा होनेपर अनवस्था दोषका प्रसंग आता है।
इसी कारण गुणितकर्माशिकको तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योगोंसे ही घुमाना चाहिये, क्योंकि, इसके विना उसके बहुत प्रदेशोंका संचय घटित नहीं होता। क्षपितकर्मोशिकको भी खड्गधारा सदृश तत्प्रायोग्य जघन्य योगोंकी पंक्तिसे प्रवर्ताना चाहिये, क्योंकि, अन्य प्रकारसे कर्म और नोकर्मके प्रदेशोंकी अल्पता नहीं बनती।।
योगस्थानों की प्ररूपणामें ये दस अनुयोगद्वार जानने योग्य हैं ॥ १७५ ॥ यहां योग चार प्रकार है-नामयोग, स्थापनायोग, द्रब्ययोग और भावयोग ।
२ अ-आ-काप्रतिषु 'पदेसायदण', ताप्रतौ'पदेसायदण
१ अ-आ-काप्रतिषु 'परिच्छेदो' इति पाठः। इति पाठः।
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