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________________ ४, २, ४, १७३.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे चूलिया [४२९ जहण्णुक्कस्सएयंताणुवड्डिजोगा एदे •v •v । सो कस्स ? बिदियसमयतब्भवत्थस्स चरिमसमयअपज्जत्तस्स । सो केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । तदुवरि सुहुम-बादरलद्धिअपज्जत्ताणं जहाकमेण एदे जहण्णुक्कस्सपरिणामजोगा। सो कस्स ? आउअबंधपाओग्गकाले जहण्णुक्कस्सेण परिणामजोगेसु वट्टमाणस्स । केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण जहाकमेण चत्तारिसमया बेसमया। तदुवरि सुहुम-बादरणिव्वत्तिअपज्जत्ताणं जहाकमेण जहण्णुक्कस्सपरिणामजोगा • v v | तत्थ जहण्णपरिणामजोगो सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स पढमसमए होदि । ण च एसो णियमो, उवरि वि जहण्णपरिणामजोगसंभवादो। उक्कस्सपरिणामजोगो परंपरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स होदि। जहण्णपरिणामजोगो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारिसमइओ। उक्कस्सजोगो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण बेसमया । बेइंदियादिसण्णिलद्धिअपज्जत्ताणं जहाकमेण एदे जपणएयंताणुवाड्डिजोगा •v •v १६६९ । सो कस्स ? बिदियसमयतब्भवत्थस्स जहण्णएगताणुषड्डिजोगे वट्टमाणस्स । सो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । तदुवरि तेसिं चेव जहाकमेण वृद्धियोग ये हैं (मूलमें देखिये)। वह किसके होता है ? वह तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें वर्तमान चरमसमयवर्ती अपर्याप्तके होता है। वह कितने काल होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है। इसके आगे सूक्ष्म व बादर · लब्ध्यपर्याप्तोंके यथाक्रमसे ये जघन्य व उत्कृष्ट परिणामयोग हैं। वह किसके होता है ? वह आयुबन्धकके योग्य कालमें जघन्य व उत्कर्षसे परिणामयोगोंमें रहनेवाले जीवके होता है । वह कितने काल होता है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे क्रमशः चार व दो समय होता है । इसके आगे सूक्ष्म व बादर नित्यपर्याप्तोंके यथाक्रमसे जघन्य व उत्कृष्ट परिणामयोग ये हैं। उनमें जघन्य परिणामयोग शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त होनेके प्रथम समयमें होता है। परन्तु यह नियम नहीं है, क्योंकि, आगे भी जघन्य परिणामयोग सम्भव है। उत्कृष्ट परिणामयोग परम्परापर्याप्तिसे पर्याप्त हुए जीवके होता है। जघन्यं परिणामयोग जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय होता है । उत्कृष्ट परिणामयोग जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय होता है। द्वीन्द्रियको आदि लेकर संशी लब्ध्यपर्याप्तकोंके यथाक्रमसे ये जघन्य एकान्तानुवृद्धियोग होते हैं (मूलमें देखिये )। वह किसके होता है ? वह जघन्य एकान्तानुवृद्धियोगमें वर्तमान जीवके तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें होता है। वह कितने काल होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है। __उसके आगे उक्त जीवोंके ही यथाक्रमसे उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग ये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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