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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, १७३.
सुहुमादिसण्णि त्ति लद्धिअपज्जत्ताणं जहाकमेण जहण्णुक्कस्सउववादजोगा
००००००० V००००० ०० ०० 7 ०००००
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सो कस्स ? पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णजोगिस्स उक्कस्सउववादजोगिस्स । केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ ।
__सुहुमादिसण्णि त्ति णिव्वत्तिअपज्जत्ताणं' जहाकमेण जहण्णुक्कस्सउववादजोगासो कस्स ? पढमसमयतब्भवत्थस्स जहण्णुक्कस्सउववादजोगे वट्टमाणस्स । सो केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ •v •v ।।
- सुहुम-बादराणं लद्धिअपज्जत्ताणं जहाकमेण एदे जहण्णुक्कस्सएयंताणुवड्डिजोगासो कस्स ? बिदियसमयतम्भवत्थस्स एयंताणुवडिकालचरिमसमए वट्टमाणस्स । सो केवचिरं कालादो होदि १ जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । सुहुम-बादराणं णिव्वत्तिअपज्जत्ताणं जहाकमेण
सूक्ष्मको आदि लेकर संज्ञी पंचेन्द्रिय तक लब्ध्यपर्याप्तकोंके यथाक्रमसे जघन्य व उत्कृष्ट उपपादयोग ये हैं (संदृष्टि मूलमें देखिये)। वह किसके होता है ? वह तद्भवस्थ होनेके प्रथम समयमें वर्तमान जघन्य व उत्कृष्ट योगवालेके होता है । वह कितने काल होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है।
सूक्ष्मको आदि लेकर संज्ञी तक निर्वृत्त्यपर्याप्तकोंके यथाक्रमसे जघन्य व उत्कृष्ट उपपादयोग ये हैं। वह किससे होता है ? वह तद्भवस्थ होनेके प्रथम समयमें वर्तमान जघन्य व उत्कृष्ट योगमें रहनेवाले जीवके होता है। वह कितने काल होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है।
__ सूक्ष्म व बादर लब्ध्यपर्याप्तकोंके यथाक्रमसे ये जघन्य व उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धियोग हैं। वह किसके होता है? वह एकान्तानुवृद्धियोगकालके अन्तिम समयमें वर्तमान जीवके तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें होता है। वह कितने काल होता है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे एक समय होता है।
सूक्ष्म व बादर निर्वृत्त्यपर्याप्तकोंके यथाक्रमसे जघन्य व उत्कृष्ट एकान्तानु
. मप्रतिपागेऽयम् । अ-आ-काप्रतिषु ' -सणिति अपज्जत्ताणं', ताप्रतौ ' सण्णिात्ति णि लद्धिअपज्जताणं' इति पाठः।
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