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१०४] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, १७३. ___ संपहि पमाणं वुच्चदे । तं जहा- एदेसि वुत्तसव्वजीवसमासाणं उववादजोगट्ठाणाणं एयंताणुवड्डिजोगट्ठाणाणं परिणामजोगट्ठाणाणं च पमाणं सेडीए असंखेज्जदिभागो । पमाणपरूवणा गदा ।
___अप्पाबहुगं [दुविहं] जोगट्ठाणप्पाबहुगं जोगाविभागपडिच्छेदप्पाबहुगं चेदि । तत्थ जोगट्टाणप्पाबहुगं वत्तइस्सामो । तं जहा- सव्वत्थोवाणि सत्तण्णं लद्धिअपज्जत्ताणमुववादजोगट्ठाणाणि । तेसिमेगंताणुवड्डिजोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । परिणामजोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । सत्तणं णिव्वत्तिअपज्जत्तजीवसमासाणं सव्वत्थोवाणि उववादजोगट्ठाणाणि । एगंताणुवड्डिजोगट्ठाणाणि असंखेज्जगुणाणि । सत्तणं णिव्वत्तिपज्जत्ताणं णस्थि अप्पाबहुगं, परिणामजोगट्ठाणाणि मोत्तूण तत्थ अण्णेसिं जोगट्ठाणाणमभावादो । सव्वत्थ गुणगारो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एवं जोगहाणप्पाबहुगं समत्तं ।
चौदसजीवसमासाणं जोगाविभागपडिच्छेदप्पाबहुगं तिविहं सत्थाणं परत्थाणं सव्व. परत्थाणमिदि । तत्थ ताव सत्थाणं वत्तइस्सामो। तं जहा- सव्वत्थोवा सुहुमेइंदियलद्धिअपज्जत्तयस्स जहण्णुववादजोगट्ठाणस्स अविभागपडिच्छेदा । तस्सेव उक्कस्सुववादजोगट्ठाणस्स
अब प्रमाणकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है--इन उक्त सब जीवसमासोंके उपपादयोगस्थानों, एकान्तानुवृद्धियोगस्थानों और परिणामयोगस्थानोंका प्रमाण जगश्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र है । प्रमाणकी प्ररूपणा समाप्त हुई।
अल्पबहुत्व दो प्रकार है- योगस्थानअल्पबहुत्व और योगाविभागप्रतिच्छेदअल्पबहुत्व । उनमें योगस्थानअल्पबहुत्वको कहते हैं। वह इस प्रकार है लब्ध्यपर्याप्तकोंके उपपादयोगस्थान सबसे स्तोक हैं। उनसे उनके एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणे हैं। उनसे परिणामयोगस्थान असंख्यातगुणे हैं। सात निर्वृत्तिअपर्याप्त जीवसमासोंके उपपादयोगस्थान सबसे स्तोक हैं । उनसे एकान्तानुवृद्धियोगस्थान असंख्यातगुणे हैं । सात निर्वृत्तिपर्याप्तकोंके अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, परिणामयोगस्थानोंको छोड़कर उनमें अन्य योगस्थानोंका अभाव है। गुणकार सब जगह पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । इस प्रकार योगस्थानअल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
चौदह जीवसमासोंका योगाविभागप्रतिच्छेदअल्पबहुत्व तीन प्रकार हैस्वस्थान, परस्थान और सर्वपरस्थान । उनमें पहिले स्वस्थान अल्पबहुत्वको कहते हैं । वह इस प्रकार है- सूक्ष्म एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य उपपादयोगस्थान सम्बन्धी अविभागप्रतिच्छेद सबसे स्तोक हैं । उनसे उसीके उत्कृष्ट उपपादयोगस्थान
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१ अ-आ-काप्रतिषु ' अस्थि ', ताप्रतौ ' अ (ण) थि' इति पाठः ।
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