________________
३७६ ) छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, २, ४, १२३. एक्खेवो हादि । तेण विगलपक्खेवभागहारो एगरूवमेगरूवस्स संखेज्जदिभागो च होदि त्ति भणिदं । एवंविहमेगविगलपक्खेवं दोहि बड्डीहि वद्भिदण विदो च, अण्णेगो तिरिक्खाउअंबंधमाणो समऊणबंधगद्धाए जहण्णजोगेण बंधिय पुणो एगसमयं पक्खेवुत्तरजोगेण बंधिदूणागदो च, सरिसा । पुणो पुश्विल्लं मोत्तण परमाणुत्तरादिकमेण दोहि वड्डीहि एगविगलपक्खेवो वड्ढावेदव्यो । एवं वड्डिद्ण हिदो च, अण्णगो समऊणजहण्णबंधगद्धाए जहण्णजोगेण बंधिय पुणो एगसमयं दुपक्खेवुत्तरजोगेण बंधिदृणागदो च, सरिसा । एदेण कमेण विगलपक्खेवभागहारमत्तविगलपक्खेवेसु वढ्दिसु रूवूणभागहारमेत्तसयलपक्खेवा ववृति । एवं वविदूण विदो च, अण्णेगो जहण्णजोग-जहण्णबंधगद्धाहि तिरिक्खाउअं यंधिय पुणो कदलीघादं कादण समऊणजहण्णबंधगद्धाए णिरयाउअं जहण्णजोगेण बंधिय पुणो एगसमयं रूवूणभागहारमेत्तजोगट्ठाणाणं चरिमजोगट्ठाणेण बंधिदूण हिदो च, सरिसा । पुणो एदं घेत्तूण तिरिक्खाउअदव्वस्सुवरि भागहारमेती विगलपक्खेवा वड्ढावेदव्वा । एवं वडिदण द्विदो च, पुणो णिरयाउअं बंधमाणो पुचिल्लजोगस्सुवरि एगसमयं रूवूणभागहार
प्रक्षेपका भागहार एक रूप और एक रूपका संख्यातवां भाग होता है, ऐसा कहा गया है।
इस प्रकार के विकल प्रक्षेपको दो वृद्धियों द्वारा बढ़ाकर स्थित हुआ, तथा दूसरा एक जीव तिर्यंच आयुको बांधता हुआ एक समय कम बन्धककाल और जघन्य योगसे बांधकर पुनः एक समय में एक प्रक्षेप अधिक योगसे बांधकर आया हुआ, दोनों सदृश हैं।
अब पूर्वको छोड़कर एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे दो वृद्धियों द्वारा एक विकल प्रक्षेपको बढ़ाना चाहिये। इस प्रकार बढ़कर स्थित हुआ, तथा दूसरा पक जीव समय कम जघन्य बन्धककाल व जघन्य योगसे आयुको बांधकर फिर एक समयमें दो प्रक्षेसे अधिक योगसे बांधकर आया हुआ, ये दोनों सदृश है।
इस क्रमसे विकल-प्रक्षेप-भागहार प्रमाण विकल प्रक्षेपोंकी वृद्धि हो जाने पर रूर कम भागहार मात्र सकल प्रक्षेप बढ़ते हैं। इस प्रकार बढ़कर स्थित हुआ, तथा दूसरा एक जीव जघन्य योग व जघन्य बन्धककालसे तिथंच आयुको बांध कर फिर कदलीघात करके एक समय कम जघन्य बन्धक काल व जघन्य योगसे नारक
आयुको बांधकर फिर एक समयमें रूप कम भागहार मात्र योगस्थानों में अन्तिम योगस्थानसे आयुको बांधकर स्थित हुआ, ये दोनों सहश हैं।
___ अब इसको ग्रहण करके तिर्यच आयुके द्रव्यके ऊपर भागहार प्रमाण विकल प्रक्षेगाको बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़कर स्थित हुआ, तथा नारक आयुको
१ आकापत्योः मेवाणि ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org