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४, २, ४, १२२.] यणमहाहियारे वेयणदत्वविहाणे सामित्त
[ ३७३ सत्तण्णमागरिसाणं दवं बंधिय विदो च, सरिसा । पुन्विल्लं मोत्तण एवं कदलीघाददच्वं घेत्तूण बंधगद्धाजोगं च अस्सिदूण वड्ढावेदव्वं । एवं वड्डाविज्जमाणे दब्वस्स अणंतभागवड्डिअसंखेज्जभागवडि-संखेज्जभागवटि-संखेज्जगुणवडि-असंखेज्जगुणवटि त्ति पंचवड्डीओ होंति। जोगस्स पुण असंखेज्जभागवड्डि-संखेज्जभागवड्डि-संखेज्जगुणवड्डि-असंखज्जगुणवटि ति चत्तारिवड्डीयो । बंधगद्धाए असंखेज्जभागवटि-संखेज्जभागवड्डि-संखेज्जगुणवटि ति तिण्णिबड्डी।। तं कधं वड्डाविज्जदे ? वुच्चदे-- संपधि दव्वस्सुवरि परमाणुत्तरादिकमेण एगो विगलपक्खेवो वड्ढावेदव्यो । यत्थ विगलपक्खेवभागहारो को होदि ? एगरूवमेगरूवस्स संखेजदिभागो च । तं जहा --- किंचूणपुवकोडिं विरलेदूण एगसगलपक्खेवं समखंडं कादण दिगणे पढमणिसेयपमाणं पावदि । पुणो कदलीघादहेट्ठिमसमयप्पहुडि पढमसमओ त्ति अंते।मुहुत्तण पुविल्लभागहारमोवट्टिय विरलेद्ग सगलपक्खेवं समखंडं कादण दिण्णे अंतोमुहुत्तमेत्ता पढमणिसेगा पावेति । पुणो हेट्ठा णिसंगभागहार पुविल्लंतोमुहुत्तगुणिदं रूवूर्णतो
स्थित हुआ, ये दोनों सदृश हैं। पूर्व द्रव्यको छोड़कर और इस कदलीघात द्रव्यको ग्रहण करके बन्धककाल व योगका आश्रय करके बढ़ाना चाहिये । इस प्रकार बढ़ाते समय द्रव्य के अनन्तभागवृद्धि असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धि, ये पांच वृद्धियां होती हैं । किन्तु योगके असंख्यात. भागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि, संख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणवृद्धि, ये चार ही वृद्धियां होती है। बन्धककालके असंख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागवृद्धि और संख्यात. गुणवृद्धि, ये तीन वृद्धियां होती हैं।
शंका -- वह कैसे बढ़ाया जाता है ?
समाधान --- इसका उत्तर कहते हैं--अब यहां द्रव्य के ऊपर एक परमाणु अधिक भादिके क्रमसे एक विकल प्रक्षेस बढ़ाना चाहिये।
शंका- यहां विकल प्रक्षेपका भागहार क्या होता है ? - समाधान --- उसका भागहार एक रूप और एक रूपका संख्यातवां भाग होता है । यथा- कुछ कम पूर्वकोटिका विरलन करके एक सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर प्रथम निषेकका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर कदलीघातके अधस्तन समयसे लेकर प्रथम समय तकके अन्तर्मुहूर्त कालसे पूर्वोक्त भागहारको अपवर्तित करके विरलित कर सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर अन्तर्मुहूर्त प्रमाण प्रथम निषेक प्राप्त होते हैं। फिर नीचे निषेकभागहारको पूर्वोक्त अन्तर्मुर्तिसे गुणित कर फिर
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