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________________ १, २, १, १२२.) वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [ ३६७ जोगहाणदाणादो असंखेज्जगुणं होदि। कारणं चिंतिय वत्तव्वं । दुचरिमणिसेगजोगट्ठाणद्धाणादो तिचरिमणिसेगजोगट्ठाणद्धाणं विसेसहीणं होदि । पुणो एवं हेहिम-हेट्ठिमगोवुच्छाणं जोगट्ठाणद्धाणं विसेसहीणं चेव होदि । पुणो एत्तियमेत्तजोगट्ठाणेण बंधिदूणागद चरिमसमयतिरिक्खदच्वं च पुणो जहण्णजोग-जहण्णबंधगद्धाहि तिरिक्ख-णिरयाउअंबंधिदूणागददुचरिमसमयतिरिक्खदव्वेण सरिसं । पुणो एत्थ परमाणुत्तरादिकमेण एगविगलपक्खेवो वड्ढावेदव्यो । पुणो तस्स भागहारो चरिमगोवुच्छभागहारादो अद्धं किंचूणं होदि। पुणो तस्स भागहारमेत्तविगलपक्खेवेसु वडिदेसु एगो सगलपक्खेवो वड्वदि । जोगट्ठाणद्धाणं पि भागहारमेत्तं चेव होदि । एवं ताव वड्ढावेदव्वं जाव पुवकोडितिचरिमगोवुच्छाए जत्तिया सगलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्ता वड्डिदा त्ति । पुणो तिस्से चरिमगोवुच्छाए सगलपक्खेवाणं गवेसण कीरदे । तं जहा- चरिमगोवुच्छभागहारं सादिरेयपुव्वकोडिं विरलेदूण एगसगलपक्खेव समखंड कादण दिण्णे चरिमगोवुच्छपमाणं पावदि । पुणो रूवूणपुवकोडीए ऊर्णणिसेगमागहारस्स अद्धेण रूवाहियेण निषेक सम्बन्धी योगस्थानाध्वानसे असंख्यातगुणा होता है। इसका कारण जानकर कहना चाहिये। द्विचरम निषेक सम्बन्धी योगस्थानाध्वानसे विचरम निषेक सम्बन्धी योगस्थानाध्वान विशेष हीन है। इस प्रकार नीचे नीचेकी गोपुच्छाओंका योगस्थाना. वान विशेष हीन ही होता है। अब इतने मात्र योगस्थानाध्वानसे आयुको बांधकर भाये हुए चरम समयवर्ती तिर्यचका द्रव्य, तथा जघन्य योग और जघन्य बन्धककालसे तिर्यच य नारक आयुको बांधकर आये हुए द्विचरम समय सम्बन्धी तिर्यचका द्रव्य, समान होता है। फिर यहां एक परमाणु अधिक आदिके क्रमसे एक विकल प्रक्षेप बढ़ाना चाहिये। अब उसका भागहार चरम गोपुच्छके भागहारसे कुछ कम आधा होता है । पुनः उसके भागहार मात्र विकल प्रक्षेपोंकी वृद्धि हो जानेपर एक सकल प्रक्षेप बढ़ता है। योगस्थानाध्वान भी भागहार प्रमाण ही होता है। इस प्रकार तब तक बढ़ाना चाहिये जब तक कि पूर्वकोटिकी त्रिचरम गोपुच्छामें जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र नहीं बढ़ जाते। - अब उस चरम गोपुच्छ सम्बन्धी सकल प्रक्षेपोंकी गवेषणा करते हैं। वह इस प्रकार है-चरम गोपुच्छके भागहारभूत साधिक पूर्वकोटिका विरलन करके एक सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर चरम गोपुच्छका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः एक कम पूर्वकोटिसे हीन निषेकभागहारके अर्ध भागमें एक अंक मिलानेपर जो प्राप्त हो उससे ....................... १ अ-आ-काप्रतिषु 'जोगट्ठाणाणं', तापतौ 'जोगट्ठा [णा] णं' इति पाठः। 'जणा' इति पाठः। २ अ-आ-काप्रतिषु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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