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________________ ३६० ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, २, ४, १२२. समओ त्ति । पुणो णारगतदियसमए द्विदस्स विगलपकखेवभागहारं भणिस्सामा । तं जहा - दिवड गुणहाणीए अद्धं विरलेदूण एगसगलपक्खेवं समखंडं काढूण दिण्णे एक्केक्रस रूवस्स दो-दो पढमणिसेया पावेंति । एत्थ एगरूवधरिदं दुगुणणिसेय भागहारेण खंडेण तत्थे खंडपमाणे सव्वरूवधरिदेसु फेडिदे पढम - विदियणिसेयपमाणं होदि । पुणो फेडिददव्वं हाइदूर्ण जहा गच्छदि तहा वत्तइस्सामा । तं जहा- - दुगुणरूवूणणिसे गभागहारमेत्तगोवच्छविसेसाणं जदि पढम-बिदियणिसेयपमाणं लब्भदि तो दिवड गुणहाणिअद्धमेत्तगोवच्छविसेसेसु केत्तिए पढम-विदियणिसेगा लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छामोवट्टिय लद्धं दिवड्डुगुणहाणिदुभागम्मि पक्खिते दिवङगुणहाणीए अद्धं सादिरेयं विगलपक्खेवभागहारो होदि । एसभागहारमेत्त जोगट्ठाणाणि उवरि चडिदूण बंधमाणस्स रूवूणभागहारमेत्तसगलपक्खेवा वहू॑ति । एवं ताव वढावेदव्वं जाव णारगविदियणिसेयम्मि जत्तिया सयलपक्खेवा अत्थि तत्तियमेत्ता वड्ढिदा त्ति । संपहि णारगबिदियगोवुच्छाए किं पमाणमिदि बुत्ते सादिरेयदिव ड्डगुणहाणीए ए तक ले जाना चाहिये । पुनः नारक भवके तृतीय समय में स्थित जीवके विकल प्रक्षेपके भागहारका कथन करते हैं । वह इस प्रकार है डेढ़ गुणहानि के अर्ध भागका विरलन करके एक सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति दो दो प्रथम निषेक प्राप्त होते हैं। यहां एक अंकके प्रति प्राप्त राशिको दुगुणे निषेकभागहारसे खण्डित कर उसमें एक खण्डप्रमाणको सब अंकों के प्रति प्राप्त राशियोंमैसे कम करनेपर प्रथम व द्वितीय निषेकका प्रमाण होता है । फिर घटाया हुआ द्रव्य हीन होकर जैसे जाता है वैसा बतलाते हैं । वह इस प्रकार है - दुगुणे निषेकभागद्दारमें एक कम करनेपर जो शेष रहे उतने मात्र गोपुच्छविशेषों के यदि प्रथम व द्वितीय निषेकका प्रमाण प्राप्त होता है तो डेढ़ गुणहानिके अर्ध भाग मात्र गोपुच्छविशेषों में कितने प्रथम व द्वितीय निषेक प्राप्त होंगे, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित कर लब्धको डेढ़ गुणहानिके अर्ध भागमै मिलानेपर डेढ़ गुणहानिका साधिक अर्ध भाग विकल प्रक्षेपका भागहार होता है । इस भागहार प्रमाण योगस्थान ऊपर चढ़कर आयुको बांधनेवालेके एक रूप कम भागहार मात्र सकल प्रक्षेप वृद्धिको प्राप्त होते हैं । इस प्रकार नारक के द्वितीय निषेकमें जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने बढ़ने तक बढ़ाना चाहिये । शंका नारकी की द्वितीय गोपुच्छाका क्या प्रमाण है ? समाधान - - ऐसा पूछनेपर उत्तर देते हैं कि वह साधिक डेढ़ गुणहानिसे एक १ प्रतिषु ' सइदूण' इति पाठः । २ ताप्रतौ ' गुणहाणिएग ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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