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४, २, ४, १२२.) वेषणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामि
[ ३५१ मोवट्टिय लद्धेण रूवाहिएण रूवाहियओदिण्णद्धाणावट्टिदअंगुलस्स असंखेन्जदिमागे भागे हिदे भागलद्धं तम्हि चेव सोहिदे सुद्धसेसो तदित्थविगलपक्खेवभागहारो होदि । एवं जाणिदूण ओदारेदव्वं जाव चरिमगुणहाणिमेत्तमोदिण्णो त्ति । पुणो तत्थ तेत्तीससागरोवमणाणागुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोणब्भत्थरासी रूवूणो विगलपक्खेवभागहारो होदि । चरिमगुणहाणिदव्वे चरिमणिसेगपमाणेण कदे किंचूणदिवड्डगुणहाणिमेत्तचरिमणिसेया होति । पुणो तेहि चरिमणिसेयभागहारे अंगुलस्स असंखेज्जदिभागे
ओवट्टिदे गुणगार-भागहार-दिवड्गुणहाणीओ समाओ त्ति अवणिदासु रूवूणण्णोण्णब्भत्थरासिस्सेव अबढाणादो। पुणो चरिमगुणहाणिपढमसमए ट्ठाइदूण परमाणुत्तरादिकमेण एगविगलपक्खेवं वड्डिदृण ट्ठिदो च, अण्णेगो पक्खेवुत्तरजोगेण बंधिदूणागदो च, सरिसा । एदेण कमेण खूणगोण्णभत्थरासिमेतविगलपक्खेवेसु पविढेसु एगो सगलपक्खेवो पविट्ठो होदि । विगलपक्खेवभागहारमेत्ताणि चेव जोगट्ठाणाणि उवरि चडिदो होदि । एदेण कमेण ताव वड्ढावेदव्यं जाव दुचरिमगुणहाणिचरिमणिसेगो वड्ढिदो त्ति ।
संपहि दुचरिमगुणहाणिचरिमणिसेगसगलपक्खेवाणं गवसणा कीरदे । तं जहा -
मिलाकर रूपाधिक अवतीर्ण अध्धानसे अपवर्तित अंगुलके असंख्यातवे भागमें भाग देनेपर जो लब्ध हो उसे उसीमेंसे कम करने पर शुद्धशेष वहांके विकल प्रक्षेपका भागहार होता है । इस प्रकार जान कर अन्तिम गुणहानि मात्र उतरने तक उतारना चाहिये । परन्तु वहां तेतील सागरोपमोंकी नानागुणहानिशलाकाओंका विरलन कर दुगुणा करके परस्परमें गुणित करनेपर जो राशि प्राप्त हो उसमेंसे एक कम करनेपर विकल-प्रक्षेप-भागहार होता है । अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको अन्तिम निषेकके प्रमाणसे करनेपर कुछ कम डेढ़ गुणहानि मात्र अन्तिम निषेक होते हैं। फिर उनसे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र अन्तिम निषेकके भागहारको अपवर्तित करनेपर गुणकार, भागहार व डेढ़ गुणहानियां समान होती हैं, क्योंकि, उनको कम करनेपर एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशि ही अवस्थित रहती है । पुनः अन्तिम गुणहानिके प्रथम समयमें स्थित होकर एक परमाणु अधिक इत्यादि क्रमसे एक विकल प्रक्षेपको बढ़ाकर स्थित हुआ, तथा प्रक्षेप अधिक योगके क्रमसे बांधकर आया हुआ दूसरा एक जीव, ये दोनों जीव सदृश हैं । इस क्रमसे रूप कम अन्योन्याभ्यस्त राशि मात्र विकल प्रक्षेपोंके प्रविष्ट हो जाने पर एक सकल प्रक्षेप प्रविष्ट होता है। विकल प्रक्षेपके भागहार प्रमाण ही योगस्थान ऊपर चढ़ता है । इस क्रमले द्विचरम गुणहानि सम्बन्धी अन्तिम निषेकके बढ़ने तक बढ़ाना चाहिये।
__अब द्विचरम गुणहानिके अन्तिम निषेक सम्बन्धी सकल प्रक्षेपोंकी गवेषणा की जाती है। वह इस प्रकारसे-द्विचरम गुणहानिके चरम निषेकका भागहार
१ प्रतिषु 'भागेण ' इति पाठः ।
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