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________________ ४, २, ४, १२२.) वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं [ ३३९ गुणिय विरलेदूण एगसगलपक्खेवं समखंड कादूण दिण्णे एक्केक्कस्स रुवस्स एगेगविसेसपमाणं पावदि । पुणो एदेण गोबुच्छविसेसपमाणेण उवरिमविरलणाए ओवहिदे सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ता गोवुच्छविसेसा पाति । पुणो एदे सगलपक्खेवे कस्सामो। तं जहा- रूवाहियगुणहाणिगुणिदअंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तविसेसे घेत्तूण जदि एगो सगलपक्खेवो लब्भदि तो सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्तगोवुच्छविसेसेसु किं लभामो ति पमाणेण फलगुणिदिच्छाए ओवट्टिदाए सेडीए असंखेज्जदिभागमेत्ता सगलपक्खेवा लभंति । ___ संपहि एगसमयपबद्धसगलपक्खेवभागहार सेडीए असंखेज्जदिभागं जहण्णबंधगद्धाए गुणिय विरलेदूण जपणबंधगद्धामेत्तसमयपबद्धेसु समखंड कादण दिण्णेसु एक्केक्कस्स रूवस्स सगलपक्खेवपमाणं पावदि । संपहि बंधगद्धामेत्तसमयपबद्धाणं चरिमसमयणिसित्तदव्यं सगलपक्खेवे कस्सामो । तं जहा-~- अंगुलस्स असंखेज्जदिमागेण सगलपक्खेवे भागे हिंदे विगलपक्खेवो लब्भदि । एदेण पमाणेण उवरिमविरलणाए अवणिदे जहण्णबंधगद्धागुणिदघोलमाणजहण्णजोगट्ठाण ............................ असंख्यातवें भागको गुणित कर जो प्राप्त हो उसका विरलन करके एक सकल प्रक्षेपको समस्खण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति एक एक विशेषका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर इस गोपुच्छविशेषके प्रमाणसे उपरिम विरलनको अपवर्तित श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र गोपुच्छविशेष प्राप्त होते हैं। पुनः इनके सकलप्रेक्षा करते हैं । यथा-एक अधिक गुणहानिसे गुणित अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र विशेषों को ग्रहण कर यदि एक सकल प्रक्षेप प्राप्त होता है तो श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र गोपुच्छविशेषोंमें क्या प्राप्त होगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाके अपवर्तित करने पर श्रेणिके असंख्यातवें भाग मात्र सकल प्रक्षेप प्राप्त होते हैं। अब एक समयबद्ध सम्बन्धी सकलप्रक्षेपके भागहारको, जो कि श्रेणिके असंख्यावें भाग है, जघन्य बन्धककालसे गुणित करने पर जो कुछ प्राप्त हो उसका विरलन करके जघन्य बन्धककाल मात्र समयप्रबद्धोंको समखण्ड करके देनेपर एक एक अंकके प्रति सकल प्रक्षेपका प्रमाण प्राप्त होता है। ___अब बन्धककाल मात्र समयप्रबद्धोंके अन्तिम समय में निक्षिप्त द्रव्यको सकल प्रक्षेप रूपसे करते हैं । यथा- अंगुलके असंख्यातवें भागका सकल प्रक्षेपमें भाग देनेपर विकल प्रक्षेप प्राप्त होता है। इस प्रमाणसे उपरिम विरलनमें से कम करनेपर जघन्य बन्धककालसे गुणित घोलमानयोगस्थान सम्बन्धी प्रक्षेपभागहार मात्र विकल प्रक्षेप प्राप्त होते हैं। १ अप्रतो उवरि विरलगाए अवणिदे', आ-काप्रत्योः 'उरि विरलणाए अहिदे ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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