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________________ १, २, ४, ६०.] यणमहाहियारे वेपणदष्यविहाणे सामित्त घेतूण तदुवरिमाहिदीए णिसिंचदि । एवं ताव णिसिंचमाणो गच्छदि जाव अपुष्वकरणद्धादो [ अणियट्टिकरणद्धादो ] च विसेसाहिओ कालो गदो त्ति । तत्तो उपरिमाए हिदीए असंखेज्जगुणहीणपदेसे णिसिंचदि । तत्तो उपरि सव्वत्थ विसेसहीणं णिसिंचदि जाव अप्पप्पणो अइच्छावणावलियहेष्टिमसमओ त्ति । एवमेसा अपुव्वकरणस्स पढमसमए कदा गुणसेडी । बिदियसमए पुण पढमसमयओकीड्डददव्वादो असंखेज्जगुणं दव्वमोकडिदण उदयावलियबाहिरहिदीए दिस्समाणादो असंखेज्जगुणमेत्ते समयपषद्धे णिसिंचदि । तत्तो असंखेज्जगुणे समयपबद्धे तदुवरिमहिदीए णिसिंचदि । तत्तो जाव गलिदगुणसेडिसीसगं ति' । तत्तो उवरिमहिदीए असंखेज्जगुणहीणं णिसिंचदि । उवरि सम्वत्थ विसेसहीण जाव अप्पप्पणो अइच्छावणावलियहेट्ठिमसमओ ति । पुणो तदियसमए बिदियसमओकड्डिददव्यादो असंखेज्जगुणं दव्वमोकड्डिय पुव्वं व उदयावलियबाहिरहिदिमादि कादूण गलिदसेसं गुणसेडिं करेदि । एवं सव्वसमएसु असंखज्जगुणमसंखेज्जगुणं दव्वमोकड्डिदूण सब्धकम्माणं गलिदसेसं गुणसेडिं करेदि जाव अणियष्टिकरणद्वार प्रकार निक्षेप करता हुआ अपूर्वकरण और अनिवृत्तिकरणके कालसे कुछ अधिक कालका जितमा प्रमाण हो उतने निषेक बीतने तक जाता है। उससे उपरिम स्थितिमें असंख्यातगुणे हीन प्रदेशोंका निक्षेप करता है । इससे ऊपर सर्वत्र अपनी अपनी पतिस्थापनापलीके अधस्तन समयके प्राप्त होने तक विशेष हीन विशेष हीन देता है । इस प्रकार यह अपूर्वकरणके प्रथम समयमें की गई गुणश्रेणि है। फिर द्वितीय समयमें प्रथम समयमें अपकृष्ट द्रव्यसे असंख्यातगुणे द्रव्यका अपकर्षण कर उदयाचलीके याहर प्रथम स्थितिमें दृश्यमान द्रव्यसे असंख्यातगुणे मात्र समयप्रबद्धोको देता है। उनसे असंख्यातगुणे समयप्रबद्धोंको उससे उपरिम स्थितिमें देता है। उससे आगे गलित गुणश्रेणिशर्षिके प्राप्त होने तक इसी क्रमसे देता है। फिर उससे उपरिम स्थितिमें मसंख्यातगुणे हीन समयप्रबद्धोंको देता है। फिर ऊपर सर्वत्र अपनी अपनी अतिस्थापनाघलीके अघस्तन समय तक विशेष हीन विशेष हीन देता है । पश्चात् तृतीय समयमें द्वितीय समयमें अपकृष्ट द्रव्यसे असंख्यातगुणे द्रव्यका अपकर्षण कर पहिलेके समान उझ्यावलोके बाहर प्रथम स्थितिसे लेकर गलितशेष गुणश्रेणि करता है। इस प्रकार अनिवृत्तिकरणकालके अन्तिम समयके प्राप्त होने तक सब समयोंमें भसंख्यातगुणे भसंण्यातगुणे द्रव्यका अपकर्षण कर सब कौकी गलितशेष गुणश्रेणि करता है। इस अ-आप्रयोः 'जाव गलिवगुणागसीसंगति', कतौ 'माय गुणसेगसीखयं गदेति' इति पाठ। २ अ-आ-काप्रति ' . वलियमेत्तवादिर ' इति पाठः । 8. वे. ३६. . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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