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________________ १, २, १, १७. बेयणमहाहियोरे वेयणदवबिहाणे सामित्त गुणहाणीए अद्धं सादिरेयं होदि । तत्थ बहुमागा विगलपक्खेवो होदि'। भागहारमेत विगलपक्खेवेसु परिहीणेसु रूवूणभागहारमेत्ता सयलपखवा परिहायति । एवं ताव परिहाणी कादव्या जाव जत्तिया तदियगोवुच्छाए सयलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्ता परिहीणा' ति। एवं हाइदण तदियसमये विदो च परिहाणी विणा च उत्थसमए हिदणेरइओ च दो गि सरिसा । एत्थ सगलपक्खेवबंधणविहाणं जोगट्ठाणद्धाणाणयणविहाणं च जाणिदण वक्तव्यं । एवं णेदव्वं जाव दीवसिहापढमसमओ त्ति । संपहि एगसगलपक्खेवादो दीवसिहाए पदिददव्वाणयणं उच्चदे । तं जादिवढगुणहाणिगुणिदअण्णोण्णभत्थरासिं' विरलेऊण सयलपक्खेवं समखंडं करिय दिग्णे रूवं पडि चरिमणिसेगपमाणं पावदि । पुणो एवं भागहारं दीवसिहाए ओवट्टिय विरलेऊण सयलपक्खेवं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि दीवसिहामेत्तचरिमणिसेगा पावेंति । पुणो देहा दीवसिहागुणिदरूवाहियगुणहाणि रूवूणदीवसिहासंकलणाए ओवट्टिय विरलेदण उवरिमएगरूवधरिदं समखंडं करिय दिण्णे रूवूणदीवसिहासंकलणमेत्तगोवुच्छविसेसा रूवं परि बहुभाग विकल प्रक्षेप होता है। भागहार प्रमाण विकल प्रक्षेोके हीन होनेपर एक कम भागहार मात्र सफल प्रक्षेप हीन होते हैं। इस प्रकार तब तक हानि करना चाहिये जब तक कि जितने मात्र तृतीय गोपुच्छमें सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र हीन नहीं हो जाते । इस प्रकार हीन होकर तृतीय समय में स्थित हुआ जीव तथा हानिके नाचतुर्थ समयमें स्थित हुआ नारकी जीव य दोनों ही सदृश है। यहां सकल प्रक्षेपके बन्धनविधान तथा योगस्थानअध्वानके लानेके विधानको जानकर कहना चाहिये । इस प्रकार दीपशिखाके प्रथम समय तक ले जाना चाहिये। अब एक सफल प्रक्षेपसे दीपशिखामें पतित द्रव्यके लानेकी विधि कहते हैं। यथा-डेढ़ गुणहानिसे गुणित अन्योन्याभ्यस्त राशिका घिरलन कर सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर एक अंकके प्रति चरम निषेकका प्रमाण प्राप्त होता है। पश्चात इस भागहारको दीपशिखासे अपवर्तित कर विरलन करके सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके इनपर एक अंकके प्रति दीपशिखा प्रमाण घरम निषेक प्राप्त होते है । पश्चात् नीचे दीपशिखासे गुणित एक अधिक गुणहानिको एक कम दीपशिखासंकलनासे अपवार्तत करके विरलित कर उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त राशिको समखण्ड करके देनेपर एक अंकके प्रति एक कम दीपशिखासंकलना प्रमाण गोपच्छविशेष प्राप्त होते हैं। उनको उपरिम विरलन अकोंके प्रति प्राप्त राशि १ नापतौ स्खलितोऽत्र पाठः, तापतौ तु 'पिगलपक्खेवा होदि ( होति )' रति पाठः । १ म-मा-का. प्रति 'परिहीणो' इति पाठः | ३ म-आ-काप्रतिषु 'राति ' इति पाठः । छ. वे. ३४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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