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________________ ४, २, ४, ४७.} वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्त ( २६३ समाणजोगबंधगद्धाहि णिरयाउअं पुब्विल्लपयडिपडिबद्धसयलपक्खेवहितो परिहीणं बंधिय णेरइएसुप्पज्जिय विदियसमयणेरइयदव्वं च सरिस होदि । पुणो इमं मोत्तूण बिदियसमयणेरइयं घेत्तूण एग-दोपरमाणुआदिकमेण परिहीणं कादण अणुक्कस्सट्ठाणाणि उप्पादेदव्वाणि जाव सगल-विगलपक्खेवो परिहीणो त्ति । दिवड्डगुणहाणि विरलेदूण सगलपक्खेवं समखंडं कादूण दिण्णे एत्थ एगरूवधरिदं मोत्तूण बहुभागो विगलपक्खेवो होदि। एरिसेसु दिवड्डगुणहाणिमेत्तविगलपक्खेवेसु परिहीणेसु रूवूणदिवड्डगुणहाणिमेत्तसगलपक्खेवा परिहायति । एदेसु सगलपक्खेवेसु जत्तिया विगलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्ताणि चेा जोगढाणाणि बंधगद्धाए एगो समओ हेट्ठा ओदारेदव्यो । एवं ताव परिहाणी कादव्वा जाव णेरइयबिदियगोवुच्छाए जत्तिया सगलपक्खेवा अस्थि तत्तियमेत्ता परिहीणो त्ति । पुणो तत्थ सगलपक्खेवाणयणं उच्चदे। तं जहा- दिवड्डगुणहाणि विरलेऊण सयलपक्खेवं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि पढमणिसंगो पावदि । पुणो पढमणिसेगादो बिदियणिसेगो वि विसेसहीणो होदि त्ति एदं विरलणं विसेसाहियं विरलेऊण सयलपक्खेवं समखंडं करिय दिण्णे बिदियगोवुच्छा रूवं पडि पावदि । एदेण पमाणेण सव्वरूवधरिदेसु अवणिय बन्धककालसे पूर्वोक्त प्रकृतिप्रतिवद्ध सफल प्रक्षेपोंसे हीन नारक आयुको बांधकर नारकियोंमें उत्पन्न होकर द्वितीय समयवर्ती नारकीका द्रव्य, ये दोनों समान हैं। पुनः इसको छोड़कर और द्वितीय समयवर्ती नारकीको ग्रहण करके एक दो परमाणु आदिके क्रमसे हीन करके सकल और विकल प्रक्षेपके हीन होने तक अनुत्कृष्ट स्थानोंको उत्पन्न करान। चाहिये । डेढ़ गुणहानिका विरलन कर सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर यहां एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको छोड़कर बहुभाग विकलप्रक्षेप होता है। ऐसे डेढ़ गुण हानि प्रमाण विकल प्रक्षोके हीन होनेपर एक कम डेड गुणहानि मात्र सकल प्रक्षेप हीन होते हैं। इन सफल प्रक्षेपों में जितने विकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र ही योगस्थान तथा बन्धककालमें एक समय नीचे उतारना चाहिये। इस प्रकार नारक द्वितीय गोपुच्छामें जितने सकल प्रक्षेप हैं उतने मात्र हीन होने तक हानि करनी चाहिये । - अब वहांपर सकल प्रक्षेपोंके लाने की विधि कहते हैं। यथा-डेढ़ गुणहानिका विरलन कर सकल प्रक्षेपको समखण्ड करके देनेपर एकके प्रति प्रथम निषेक प्राप्त होता है। पुनः प्रथम निषेकसे चूंकि द्वितीय निषेक भी विशेष हीन है, अतः इस विरलनसे विशेष अधिकका विरलन करके सकल प्रक्षेपको समस्खण्ड करके देनेपर प्रत्येक एकके प्रति द्वितीय गोपुच्छ प्राप्त होता है । इस प्रमाणसे सब विरलन अंकोंके प्रति प्राप्त १ तापतौ । एदेण समएण जोग-' इति पाठः। २ अ-मा-काप्रतिषु 'परिहाणो ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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