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________________ ४, २, ४, ४६.] वेयणमहाहियारे वेयणदध्वविहाणे सामित्तं [२४७ __संपहि पुत्वकोडिं विरलिय समयपबद्धं समखंडं करिय दिणे रूवं पडि मज्झिमणिसेगपमाणं पावदि । पुणो हेट्ठा मज्झिमगोवुच्छाए णिसगभागहार विरलेऊण मज्झिमगोवुच्छं समखंडं करिय दिण्णे एगेगविसेसो पावदि । पुणो मज्झिमगोवुच्छं पढमगोवुच्छाए सोहिदे सुद्धसेसमेत्तविसेसेहि णिसेगभागहारमवहरिय लद्धं विरलिय उवरिमविरलणाए पढमरूवधरिदं समखंडं करिय दिण्णे ओवट्टणरूवमेत्तविसेसा पावेंति । पुणो एदेसु उवरिमरूवधरिदेसु समयाविरोहेण पक्खित्तेसु पढमणिसेयपमाणं होदि, भागहारम्मि एगरूवपरिहाणी च लब्भदि । एवं पुणो पुणो समकरणं कायव्वं जाव सव्वो समयपबद्धो पढमणिसेयपमाणेण कदो त्ति । रूवाहियदेट्टिमविरलणमेत्तद्धाणं गंतूण जदि एगरूवपरिहाणी लव्भदि तो उवरिमविरलणाए किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय लद्धमेगरूवस्स असंखेज्जदिभागं कुल द्रव्य १८, २०, २२, २४, २६, २८, ३० और ३२ इस क्रमसे दिया गया है। इसलिये मध्यम धन १८ + ३२ = ५०, ५०२ = २५ आयगा, जो कुल द्रव्यकी अपेक्षा २५, २५, २५, २५, २५, २५, २५, २५ इस क्रमसे होगा । इसे लानेकी विधि ही यहां दिखलाई गई है। वह दिखलाते हुए पहले चय धनको अलग कर लिया गया है जिससे कुल धन इस रूपमें स्थापित होता है - १८ फिर चयधनको समान रूपसे आठ स्थानों में जोड़ कर आठ स्थानों में २८ २ स्थित अन्तिम निषकोंमें मिला दिया गया है। मिलानेकी विधि मूलमें १८ २२ दिखलाई ही है। १८ २२२ अब पूर्वकोटिका विरलन कर एक समयप्रबद्धको समखण्ड करके १८ २२२२ देनेपर प्रत्येक एकके प्रति मध्यम निषेकका प्रमाण प्राप्त होता १८ २ २ २२५ है । फिर उसके नीचे मध्यम गोपुच्छके निषेकभागहारका १८ २२२२२२ चिरलन कर मध्यम गोपुच्छको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक १८ २२ २ २ २ २ २ एकके प्रति एक एक विशेष प्राप्त होता है । फिर मध्यम गोपुच्छको प्रथम गोपुच्छमेंसे कम करनेपर जो शेष रहे उतने मात्र विशेषोंसे मध्यम निषेकभागहारको भाजित कर जो प्राप्त हो उसका विरलन कर उपरिम विरलनके प्रथम अंकके प्रति प्राप्त राशिको समखण्ड करके देनेपर अपवर्तन रूप मात्र विशेष (मध्यम गोपुच्छ प्राप्त करने के लिये प्रथम गोपुच्छमेंसे जितनी संख्या कम की गई है उसका प्रमाण) प्राप्त होते हैं। पुनः इनका उपरिम विरलनके प्रत्येक एक प्रति प्राप्त राशिमें यथाविधि प्रक्षेप करनेपर प्रथम निषेकका प्रमाण होता है और भागहार में एक अंककी हानि पायी जाती है। इस प्रकार जब तक सब समयप्रबद्ध प्रथम निषेकके प्रमाणसे नहीं किया जाता तब तक समीकरण करना चाहिये। एक अधिक अधस्तन विरलन राशि मात्र स्थान जाकर यदि एक अंकी हानि पायी जाती है तो उपरिम विरलन राशिमें क्या माप्त होगा, इस प्रकार फलगुणित इच्छा राशिको प्रमाण राशिसे भाजित करके एक १ प्रतिषु ' अखं ' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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