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________________ २४४ ] Drastra daणाखंड [ ४, २, ४, ४६. संपधि एत्थ उवसंहारो उच्चदे । को उवसंहारो ? पुव्वकोडितिभागम्मि उक्कस्साउ अबंधगद्धाए तप्पा ओग्गउक्करसजोगेण परभवियाउअं बंधिय जलचरे सुप्पज्जिय छ - पज्जत्तीओ समाणिय अंत मुहुत्तं गंतूण पुणो जीविदूणागद अंतोमुहुत्तद्धपमाणेण उवरिममंतोमुहूतूण पुव्वको डाउअं सव्वमेगसमएण सरिसखंड कदलीघादेण घादिदूण घादिसमए चैव पुणो अण्णेगपरभवियपुव्वको डाउअस्स जलचर संबंधियस्स बंधमाढविये उक्कस्साउअबंधगद्धाए तप्पा ओग्गउक्कस्सजोगेण य बंधिय से काले बंधसमत्ती होइदि त्ति ठिदस्स आउअदव्वपमाणपरिक्खा उपसंहारो णाम । तं जहा - एगसमयपबद्धं उक्कस्सजोगागदं ठविय दुगुणिदमुक्कस्सबंधगद्धाए गुणिदे उक्कस्सदोबंधगद्धामेत्तसमयपबद्ध होंति । एदे पुध ठविय एत्थ पद - विगिदिसरूवेण गलिदभुंजमाणाउअणिसेगेसु अवणिदेसु अवणिदसेस माउअस्स उक्कस्सदव्वं होदि । अब यहां उपसंहार कहते है । शंका- उपसंहार किसे कहते हैं ? समाधान - पूर्व कोटि के त्रिभागमें उत्कृष्ट आयुबन्धककालके भीतर उसके योग्य उत्कृष्ट योगसे परभव सम्बन्धी आयुको बांधकर जलचरोंमें उत्पन्न होकर छह पर्याप्तियोंको पूर्ण करके अन्तर्मुहूर्त बिताकर जीवित रहते हुए जो अन्तर्मुहूर्त काल गया है उससे अर्ध मात्र आगेका अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि प्रमाण उपरिम सब आयुको एक समयमे सदृश खण्डपूर्वक कदलीघातसे घातकर घात करने के समय में ही पुनः जलचर सम्बन्धी अन्य एक परभविक पूर्वकोटि प्रमाण आयुका बन्ध प्रारम्भ करके उत्कृष्ट आयुबन्धककाल में उसके योग्य उत्कृष्ट योगसे बन्ध करके अनन्तर समयमें बन्धकी समाप्ति होगी. अतः स्थित हुए जीवके आयुद्रव्य के प्रमाणकी परीक्षाको उपसंहार कहते हैं । विशेषार्थ - आशय यह है कि जिसने उत्पन्न होने के अन्तर्मुहूर्त बाद पूर्वकोटि प्रमाण उत्कृष्ट संचयवाली भुज्यमान आयुका जिस समय में कदलीघात किया उसी समय से लेकर वह पुनः एक पूर्वकोटि प्रमाण आयुका उत्कृष्ट बन्धककाल द्वारा उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करने लगा । उसके नवीन बन्धके अन्तिम समयमें आयु कर्मका उत्कृष्ट प्रदेशसंचय पाया तो अवश्य जाता है, पर वह कितना होता है, इस उपसंहार प्रकरण द्वारा इसी बातका विचार किया गया है । यथा - उत्कृष्ट योगसे आये हुए एक समयप्रबद्धको द्विगुणित रूपसे स्थापित कर उत्कृष्ट बन्धककालसे गुणित करनेपर उत्कृष्ट दो बंधककाल प्रमाण समयप्रबद्ध होते हैं | इनको पृथक् स्थापित कर इनमेंसे प्रकृति और विकृति स्वरूपसे निर्जीर्ण हुए भुज्यमान आयुके निषेकोको कम करनेपर कम करनेसे जो शेष रहता है वह आयुका उत्कृष्ट द्रव्य होता है । 1 १ अ-आमत्योः ' बंधमाधविय ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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