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________________ १, २, ४, १२) यणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं विणासिददव्वे त्ति । एवं सरूवदोआवलियूणआवाधमेत्तसव्वसमयपबद्धाणं पुध पुध परूवणा कायव्वा । एवमेगसमयपबद्धएगसमयओकड्डिदणाणासमयगलिदस्स परूवणा कदा। संपधि एगसमयपबद्धणाणासमयओकड्डिदणाणासमयगलिदस्स परूवणा कीरदे । तं जहा - एगममयपबद्धं ठविय ओकड्डुक्कड्डणभागहारगुणिददिवड्डगुणहाणीहि भागे हिदे एगसमयपबद्धएगसमयओकड्डिदपढमसमयगलिददव्वमागच्छदि । पुणो ओकड्डुक्कड्डणभागहारगुण दवड्ढगुणहाणीयो दोआवलियूणआबाधसंकलणाए ओवट्टिय लद्धं विरलदूण एसमयपबद्धं समखंडं करिय दिण्णे संकलणमेत्तपढमणिसेगा विरलणरूवं पडि पार्वति । पुणो एदेसिं जहासरूवेण आगमणमिच्छामो त्ति एदिस्से विरलणाए हेट्ठा पुग्विल्लसंकलणाए गुणिदाणगभागहारं विरलिय उवरिमेगरूवधरिदं समखडं करिय दिण्णे विरलणरूवं पडि एगेगगोवुच्छविसेसो पावदि । पुणो गोवुच्छविसेसाणं जहासरूवेण आगमणमिच्छामो त्ति रूवूणगच्छसंकलणासंकलणाए इमं भागहारमोवट्टिय लद्धं विरलेदूण उवरिमएगरूवधरिदं समखडं कारय दिण्णे संकलणासंकलणमत्तगोवुच्छविसेसा पार्वति । पुणो तेण पमाणेण अपकर्षण करके नष्ट कराया गया द्रव्य प्राप्त होता है। इस प्रकार एक अंक सहित दो आवलियोंसे हीन आवाधाके बराबर सव समयप्रबद्धों की पृथक् पृथक् प्ररूपणा करना चाहिये। इस प्रकार एक समयप्रबद्ध के एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे नाना समयों में नष्ट द्रव्यकी प्ररूपणा की गई है। अब एक समयप्रबद्धके नाना समयों में अपकृष्ट द्रव्यमसे नाना समयों में नष्ट हुए द्रव्यकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- एक समयप्रबद्धको स्थापित कर उसमें अपकर्षण-उत्कर्षणभागहारसे गुणित डेढ़ गुणहानियोंका भाग देनेपर एक समयप्रबद्ध के एक समयमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे प्रथम समयमें नष्ट हुआ द्रव्य आता है। पुनः अपकर्षण-उत्पकर्षणभागहारसे गुणित डेढ़ गुणहानियोंको दो आवलियोंसे हीन आवाधाके संकलनसे अपवर्तित कर लब्धका विरलन कर एक समयप्रबद्धको समखण्ड करके देनेपर संकलनके बराबर प्रथम निषेक प्रत्येक विरलन अंकके प्रति प्राप्त होते हैं। फिर चंकि यथास्वरूपसे इनका लाना अमीष्ट है, अतएव इस विरलनके नीचे पूर्वोक्त संकलनसे गुणित निषेकभागहारका विरलन कर उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक विरलन अंकके प्रति एक एक गोपुच्छविशेष प्राप्त होता है। फिर चूंकि गोपुच्छविशेषोंका यथास्वरूपसे लाना अमीष्ट है, अत एव एक कम गच्छके संकलनासंकलनसे इस भागहारको अपवर्तित कर लब्धका विरलन करके उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक अंकके प्रति संकलनासंकलन प्रमाण गोपुच्छविशेष प्राप्त होते हैं। पुनः इस प्रमाणसे उपरिम सब अंकोंके प्रति प्राप्त १ अ-काप्रत्योः 'ओकड्डुक्कडणा-' इति पाठः । २ तापतौ ' गुणहाणिम्मि' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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