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________________ १९८ छक्खंडागमे वैयणाख [४, २, १, ३१. ओकड्डिदणाणासमयगलिददव्वमागच्छदि । . संपधि तस्सेव णिरुद्धसमयपबद्धस्स बिदियसमयओकड्डिदणाणासमयगलिदभागहारे मण्णमाणे पढमसमयगलिदभागहारं रूवाहियदोआवलियूणतीहि वाससहस्सेहि ओवट्टिय लद्धं विरलेदूण बिदियसमयओकड्डिददव्वं समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि ओवट्टणरूवमेत्तपढमणिसेगा पावेंति । पुणो हेट्ठा ओवट्टणरूवगुणिदणिसेगभागहारं रूवूणोवट्टणरूवसंकलणाए ओवट्टिदं विरलिय उवरिमएगरूवधरिदपमाणमण्णं समखंडं करिय दिण्ण रूवं पडि संकलणमेतगोवुच्छविसेसा पावेंति । पुणो एदेण पमाणेण उवरिमसव्वधरिदेसु अवणिदे इच्छिदपमाणं होदि । रूवूणहेट्टिमविरलणमेतगोवुच्छविसेसाणं जीद एगरूवपक्खेवो लब्भदि तो उवरिमविरलणतेसु किं लभामो त्ति पमाणेण फलगुणिदमिच्छमोवट्टिय लद्धमुवरिमविरलणाए पक्खिविय बिदियसमयओकड्डिददव्वे भागे हिदे बिदियसमयमोकड्डिदणाणासमयगलिददव्वं होदि । एवं तदिय-चउत्थ-पंचमादिसमयओकड्डिदणाणासमयगलिदाणं परूवणा कायव्वा जाव णेरइयचरिमसमयादो हेट्ठा दुसमयाहियआवलियमेतमोदरिय हिदसमयम्हि ओकड्डिदूण द्रव्यमेंसे नाना समयों में नष्ट हुआ द्रव्य आता है। अब उसी विवक्षित समयप्रबद्ध के द्वितीय समयमें अपकृष्ट नाना समयों में नष्ट हुए द्रव्यके : प्ररूपणामें प्रथम समयमें नष्ट द्रव्यके भागहारको एक अधिक दो आवलियोले कम तीन हजार वर्षों से अपवर्तित कर लब्धका विरलन करके द्वितीय समयमें अपकृष्ट द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक अंकके प्रति अपवर्तन अंकोंके बराबर प्रथम निषेक प्राप्त होते हैं। फिर नीचे अपवर्तन रूपोंमे गुणित निषेकभागहारको एक कम अपवर्तन रूपों के संकलनसे अपवर्तित करनेपर जो लब्ध हो उसका विरलन कर उपरिम रूपोंके प्रति प्राप्त द्रव्यके बराबर अन्य द्रव्यको समखण्ड करके देने पर प्रत्येक अंकके प्रति संकलन प्रमाण विशेष प्राप्त होते हैं। फिर इस प्रमाणसे उपरिम सब अंकोंके प्रति प्राप्त द्रव्योंमेंसे कम करनेपर इच्छित प्रमाण होता है । एक कम अधस्तन विरलन प्रमाण गोपुच्छविशेषोंके यदि एक अंकका प्रक्षेप पाया जाता है तो उपारम विश्लन प्रमाण गोपुच्छविशेषों में कितने अंकों का प्रक्षेप पाया जावेगा, इस प्रकार प्रमाणसे फलगुणित इच्छाको अपवर्तित कर लब्धको उपरिम घिरनमें मिलाकर द्वितीय समय सम्बन्धी अपकृष्ट द्रव्यमें भाग देनेपर द्वितीय समयमें अपकृष्ट द्रव्यमेंसे नाना समयोंमें नष्ट हुआ द्रव्य आता है। इसी प्रकार तृतीय, चतुर्थ और पंचम आदि समयों में अपकृष्ट द्रव्य से नाना समयों में नष्ट द्रव्योंकी प्ररूपणा करना चाहिये जब तक कि ना के भवके भन्तिम समयसे नीचे दो समय अधिक आवली प्रमाण उतर कर स्थित सययमें aanua..... अ-काप्रमोः 'समओओकडिद ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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