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________________ १८८] छक्खंडागमे वेयणाखंड ४, २.१.३२ गुणहाणिदव्वं पावदि । पुणो एत्थ एगरूवधरिदं पढमगुणहाणिचरिमणिसेगेणोवट्टिय लद्धं विरलेदूण उवरिमएगरूवधरिदं' समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि चरिमणिसेगो पावदि । तमुवरि दादूण समकरणं करिय परिहाणिरूवाणयणं वुच्चदे । तं जहा- हेट्टिमविरलणा किंचूणदिवड्डगुणहाणिमेत्ता, पढमगुणहाणिचरिमणिसेगेण विदियादिगुणहाणिदव्वे भागे हिदे किंचूणदिवड्डगुणहाणिपमाणुवलंभादो । एदाए रूवाहियविरलणाए उवरिमविरलणम्मि भागे हिदे दिवड्वगुणहाणिअद्धेण किंचूणेण एगरूवं खंडिदेगखंडं लब्भदि । एदं मोहणीयं पडुच्च दोरूवहेट्ठिमअंसादो असंखेज्जगुणं, दिवड्डगुणहाणिअद्धादो अण्णोण्णभत्थरासिअद्धस्स असंखेज्जगुणत्तादो । सेसकम्मेसु णिरुद्धेसु एदम्हादो दोरूवाणं हेट्ठिमअंसो असंखेज्जगुणो, सेसकम्माणं अण्णोण्णब्भत्थरासिअद्धादो दिवड्डगुणहाणिअद्धस्स असंखेज्जगुणत्तादो । तेणेदम्हि सोहिदे मोहणीय- [स्स एगरूवस्स ] असंखेज्जदिभागूणदोरूवमेत्ता, सेसकम्माणमेगरूवस्स असंखेज्जदिभागाहियदोरूवमेत्ता विरलणरासी होदि । एवमेगरूवमेगरूवस्स असं द्रव्य प्राप्त होता है । पुनः इसमें एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको प्रथम गुणहानिके अन्तिम निषेकसे अपवर्तित करनेपर जो लब्ध हो उसका विरलन कर उपरिम एक अंकके प्रति प्राप्त द्रव्यको समखण्ड करके देनेपर प्रत्येक एक अंकके प्रति अन्तिम निषेक प्राप्त होता है। उसको ऊपर देकर समीकरण करके हीन अंकोंके लानेकी विधि कहते हैं । वह इस प्रकार है- अधस्तन विरलनका प्रमाण कुछ कम डेढ़ गुणहानि है, क्योंकि, प्रथम गुणहानिके अन्तिम निषेकका द्वितीयादिक गुणहानियोंके द्रव्यमें भाग देनेपर कुछ कम डेढ़ गुणहानिका प्रमाण [३२०० २८८ = २०३३४ ] पाया जाता है। एक अधिक इस विरलन राशिका उपरिम विरलन राशिमें भाग देनेपर कुछ कम डेढ़ गुणहानिके अर्ध भागसे एक अंकको खण्डित करने पर उसमेंसे एक खण्ड लब्ध होता है [ +१=३ ( ३४४ ) = ( x ) = = कुछ कम = (१ कुछ कम डेढ़ गुणहानि)]। यह मोहनीय कर्मकी अपेक्षा दो अंकोंके नीचेके अंशसे असंख्यातगुणा है, क्योंकि, डेढ़ गुणहानियोंके अर्ध भागसे उसकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका अर्ध भाग असंख्यातगुणा है। शेष कौकी विवक्षा करनेपर इसकी अपेक्षा दो अंकोंके नीचेका अंश असंख्यातगुणा है, क्योंकि, शेष कर्माकी अन्योन्याभ्यस्त राशिके अर्धे भागकी अपेक्षा डेढ़ गुणहानियोका अ असंख्यातगुणा है। उसमेंसे इसको कम करनेपर मोहनीयकी विरलन राशि [एक अंकके असंख्यातवें भागसे हीन दो अंक प्रमाण और शेष कौकी विरलन राशि एक अंकके असंख्यातवें भागसे अधिक दो अंक प्रमाण होती है। शंका-इस प्रकार एक अंक और एक अंकका असंख्यात बहुभाग भागहार १ प्रतिषु .एगरू' इति पाठः । २ अप्रतौ एवं' इति पाठः । ३ प्रतिषु 'असंखेज्जगुणदिवट्ठ' हीत पाठः । Jain Education International For Rrivate & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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