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१५२ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४, ३२. एत्तियं होदि |७३ । । । एदेहि गच्छं दुप्पडिरासिय गुणिदे सो रासी उप्पज्जदि
| एत्थ वाम-दाहिणदिसाठिदकरणिगयधण-रिणाणं सरिसाणमवणयणं
६४
काऊण सेसकरणिगयस्स मूलमेत्तियं होदि |७३ । एत्थ हेडिमरिणमेगरूवट्ठमभागं सोहिय अट्ठहि भागे हिदे स्वाहियगुणहाणिमेत्ता गोवुच्छविसेससंकलणा होदि ।९।।
संपहि बिदियरूवे उप्पाइज्जमाणे गुणहाणिपमाणं चउसहि [६४) । गुणहाणिचदुभागो | १६ । चदुब्भागवग्गमूलं [४] । चदुब्भागवग्गमूलेण गुणहाणिअद्धाणम्मि भागे हिदे भागहारादो चदुगुणमागच्छदि । १६|| एदं रूवाहियमुवरि चडिदूण बंधमाणस्स रूवाहियचडिदद्धाणमेत्तरूवोवट्टिदचरिमणिसंगभागहारो होदि । तं जहा- संकलणक्खेतं ठविय चरिमणिसेयपमाणेण तच्छिय पुध दृविदे चडिदद्धाणमेत्तचरिमाणसेगा होंति ९ | १७। सेसखेत्तं भागहारचदुगुणमेत्तसम-त्तिभुजं चेहदि । पुणो एवं मझे छेत्तण समकरणे कदे भाग
राशि करके गुणा करने पर यह राशि उत्पन्न होती है .५३२९,
यहां वाम और दक्षिण दिशामें स्थित करणिगत धन और ऋणके सदृश अंकोंका अपनयन कर शेष करणिगतका मूल इतना होता है । इसमेंसे अधस्तन ऋण एक बटे आठको कम करके आठका भाग देने पर एक अधिक गुणहानि मात्र गोपुच्छविशेषोंका संकलन होता है ३१ = ७२, ७२ : ८ = ९।
अब द्वितीय रूपके उत्पन्न करानेपर गुणहानिका प्रमाण ६४ है । गुणहानिका चौथा भाग १६ है । चौथे भागका वर्गमूल ४ है । चौथे भागके वर्गमूलसे गुणहानिअध्यान में भाग देनेपर भागहारसे चौगुना १६ आता है। एक अधिक ऊपर जाकर इसे बांधनेवालेके रूपाधिक जितने स्थान आगे गये हों तन्मात्र अंकोंसे भाग देनेपर अन्तिम निषेकका भागहार होता है । यथा- संकलन क्षेत्रको स्थापना करके अन्तिम निषेक प्रमाण छीलकर पृथक् रखनेपर जितने स्थान आगे गये हों उतने अन्तिम निषेक होते हैं ९४१७ । शेष क्षेत्र भागहारसे चौगुना सम त्रिभुजाकार स्थित रहता है। फिर इसे बीच में चीरकर समीकरण करनेपर भागहारसे चौगुना आयामवाला और दुगुना विस्तारवाला होकर
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