SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५.1 छक्खंडागमे वैयणाखंड १, २, ४, ५२. पक्खित्ते रूवाहियचडिदद्धाणमेत्तचरिमणिसेगा होति । पुणो एदाहि चरिमणिसेगसलागाहि चरिमणिसेगमागहारमावट्टिय उवहिदगोवुच्छविसेसाणमागमणटुं किंचूर्ण कदे इच्छिदभागहारो होदि । एत्थ अत्थपरूवणा कीरदे । तं जहा- अणवहिदभागहारं वग्गिय दुगुणेदूण गुणहाणिम्हि भागे हिंदे पक्खेवरूवाणि आगच्छति । दुगुणिदभागहारे पक्खेवरूवेहि गुणिदे अद्धमागच्छदि । संपहि रूवूणुप्पण्णद्धाणस्स पुध परूवणा कीरदे । तं जहा- जम्हि अद्धाणे एगादिएगुत्तरवडीए गदगोवुच्छविससा सव्वे मेलिदूण रूवाहियगुणहाणिमेत्ता होंति तम्हि एगरूवमुप्पज्जदि । एत्थ रूवाहियगुणहाणी गोवुच्छविसेसाणं संकलणसंदिट्ठी | ९ ।। धणमट्टत्तरगुणिदे विगुणादीउत्तरूणवग्गजुदे । मूलं पुरिमूलूणं बिगुणुत्तरभागिदे गच्छो ॥ १४ ॥ एदीए गाहाए गच्छाणयणं वत्तव्यं । तं जहा - धणमट्ठहि गुणिदे संदिट्ठीए बाहतरि | ७२।। उत्तरं गुणिदे एसा चेव होदि, उत्तरस्स एगत्तादो । दुगुणमादिमुत्तरूणं । १ । पर एक अधिक जितने स्थान आगे गये हैं उतने अन्तिम निषेक होते हैं । पुनः इन अन्तिम कोकी शलाकाओंसे अन्तिम निषेकके भागहारको अपवर्तित कर उपस्थित गोपुच्छविशेषोंके लानेके लिये कुछ कम करनेपर इच्छित भागहार होता है। यहां अर्थप्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- अनवस्थित भागहारका वर्ग करके दुगुणित कर गुणहानिमें भाग देनेपर प्रक्षेप रूप आते हैं। दुगुणित मागहारको प्रक्षेपरूपोंसे गुणित करनेपर अध्वान आता है । अब उत्पन्न हुए एक अध्वानकी पृथक प्ररूपणा करते हैं। यथा- जिस अध्वानमें एकसे लेकर उत्तरोत्तर एक अधिक वृद्धिको प्राप्त हुए गोपुच्छविशेष सब मिलकर एक अधिक गुणहानि मात्र होते हैं उसमें एक रूप उत्पन्न होता है। यहांपर एक अधिक गुणहानि (९) गोपुच्छविशेषोंके संकलनकी संरष्टि है। धनको आठसे और फिर उत्तरसे गुणा करके उसमें, द्विगुणित आदि से उत्तरको कम करके जो राशि प्राप्त हो उसके वर्गको जोड़ दे । फिर इसके वर्गमूल में से पहलेके प्रक्षेपके वर्गमूलको कम करके शेष रही राशिमें द्विगुणित उत्तरका भाग देने पर गच्छका प्रमाण आता है ॥१४॥ इस गाथा द्वारा गच्छ लानेकी विधि कहनी चाहिये । यथा-- धनको आठसे गुणित करनेपर संदृष्टिकी अपेक्षा बहत्तर ७२ होते हैं। इसे उत्तरसे गुणा करनेपर थही संख्या होती है, क्योंकि, यहां उत्तरका प्रमाण एक है । आदिको दुना करके फिर उससे उत्सरको कम करके (१४२ - २,२-१% १) वर्गित कर मिलानेपर इतना १ प्रतिषु — रूउप्पण्णद्धाणस्स ' इति पाठः। २ प्रतिषु | ६ |, मप्रतौ |९] इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy