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________________ ४, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामितं [ १३१ पढमणिसेगेण सव्वदव्वं असंखेज्जकम्मट्टिदिकालेण अवहिरिज्जदि । एदम्हादो उवरिमसव्व. णिसेगाणं असंखेज्जकम्महिदीओ भागहारो होदि । एवं गंतूण कम्मट्टिदिचरिमणिसेगपमाणेण सव्वदव्वं केवचिरेण कालेण अवहिरिज्जदि त्ति वुत्ते अंगुलस्स असंखेज्जदिमागेण असंखेज्जओसप्पिणि-उस्सप्पिणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि, अण्णोण्णब्भत्थरसिणा असंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलेण दिवड्डगुणहागिमसंखेज्जपलिदोवमपढमवग्गमूलं गुणिय सव्वदव्वे भागे हिदे चरिमणिसेगुप्पत्तीदो। एत्थ भागहारसंदिट्ठी एसा | ७६८ । एदेण सव्वदव्वे भागे हिदे चरिमणिसेगो आगच्छदि । एत्थ सबदवपमाणमेदं । ६१४४ । । एसा असम्भूदपरूवणा, कदजुम्मासु गुणहाणीसु णिसेगट्टिदीसु च अट्ठण्णं चरिमणिसेगत्ताणुववत्तीदो, अद्धद्धेण गदगुणहाणिदोसु दिवढगुणहाणिमत्तपढमणिसेगाणमसंभवादो च । संपहि फुडत्थपरूवणाए कीरमाणाए. १४४ १४४ २५६ । ३२ २५६/२५६ | १६ | १६ | १६ | २५६, १६ २५६ S VY १२० १७६ १४४ २५६ |२५६ २५६ १२८ २५६ १२८ २५६ २१६ २५ प्रथम आगे जाकर स्थित हुई गुणहानिके प्रथम निषेकसे सा द्रव्य असंख्यात कर्मस्थितिकालसे अपहृत होता है । इससे आगे नव निरेकोंका असंख्यात कर्मस्थितियां भागहार होती हैं। इस प्रकार जाकर कर्मस्थिति के अन्तिम निषेकके प्रमाणसे सब द्रव्य कितने कालसे अपहृत होता है, ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं कि वह अंगुल के असंख्यातवें भाग मात्र असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणीस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है, क्योंकि, पल्योपमके असंख्यात मूल प्रमाण अन्यान्याभ्यस्त राशिले पल्यापम के असंख्यात प्रथम वर्गमूल मात्र डेढ़ गुगहानिको गुणित करके सब द्रव्यमें भाग देनेपर अन्तिम निषेक उत्पन्न होता है । यहां भागहारकी संदृष्टि यह है- ७६८ । इसका सब द्रव्यमें भाग देनेपर अन्तिम निषेक आता है। यहां सब द्रव्यका प्रमाण यह है- ६१४४। यह असद्भूतप्ररूपणा है. क्योंकि, एक तो कृतयुग्म रूप गुणहानियों और निषेकस्थितियों में आठ संख्या प्रमाण अन्तिम निषेक बन नहीं सकता। दूसरे, प्रत्येक गुणहानिका द्रव्य उत्तरोत्तर आधा ॥ है, अतः सब द्रव्यमें डेढ़ गुणहानि मात्र प्रथम निषकोकी सम्भावना भी नहीं है। अब स्पष्ट अर्थकी प्ररूपणा करते समय इन चार प्रकारोंसे (संदृष्टि मूलमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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