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________________ ४, २, ४, ३२.] वेयणमहाहियारे घेयणदव्वविहाणे सामित्तं [ १२९ छगुणहाणिआयामसमुप्पत्तीदो| अधवा दिवड्डखेत्तं विक्खंभेण चत्तारि फालीओ कादूण एगफालीए उवरि सेसतिण्णिफालीयो कमेण संधिय ठविदे छगुणहाणिआयदं खेत्तं होदि । अधवा दोगुणहाणीओ चडिदो त्ति दोरूवे विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थे कादूण दिवटगुणहाणिं गुणिदे छग्गुणहाणीयो होति ४८ । एदेण सव्वदव्वे भागे हिदे तदियगुणहाणिपढमणिसेगो लब्भदि | १२८ | । एवं जत्तिय-जत्तियगुणहाणीओ उवरि चडिदूण भागहारो इच्छिज्जदे तत्तिय तत्तियमेत्तगुणहाणिसलागाओ विरलिय विगं करिय अण्णोण्णब्भत्थरासिणा दिवढे गुणिदे गुणगाररूवद्धमेत्ततिण्णिगुणहाणीओ लब्भंति । ताओ तदित्थणिसेगस्स भागहारो होदि । अधवा अण्णोण्णब्भत्थरासिणा दिवड्डखेत्तं विक्खंभेण खंडिय एगखंडस्स सिरे सेसखंडेसु आयामकी उत्पत्ति होती है (संदृष्टि मूलमें देखिये)। अथवा, डेढ़ गुणहानि मात्र क्षेत्रकी विस्तार की अपेक्षा चार फालियां करके एक फालिके ऊपर शेष तीन फालियोंको ऋमसे जोड़ करके स्थापित करनेपर छह गुणहानि आयत क्षेत्र होता है। अथवा, दो गुणहानियां आगे गये हैं, अतः दो संख्याका विरलन करके दुगुणा कर परस्पर गुणा करनेपर जो प्राप्त हो उससे डेढ़ गुणहानियों को गुणित करनेपर छह गुणहानियां प्राप्त होती है- १४२ = २, २ x २ ४ १२ = ४८ । इसका सब द्रव्यमें भाग देनेपर तृतीय गुणहानिका प्रथम निषेक आता है - ६१८४:४८ % १२८ ।। इस प्रकार जितनी जितनी गुणहानियां आगे जाकर भागहार इच्छित हो उतनी उतनी गुणहानिशलाकाओका विरल कर दुगुणा करके परस्पर गुणा करनेपर जो राशि प्राप्त हो उससे डेढ़ गणहानिको गणित करने पर गुणकारसंख्याके आधे अंकों प्रमाण तीन गुणहानियां प्राप्त होती हैं। वे वहांके निषेकका भागहार होती हैं। [ उदाहरणार्थ चतुर्थ शुणहानिके प्रथम निषेकका द्रव्य लाना है, इसलिये २ x २ x २ = ८ x १२ = ९६ प्रमाण १२ गुणहानि, या गुणकार ८ का आधा ४ को तीन गुणहानि २४ से गुणा करजेपर १२ गुणहानिकी ९६ संख्या लब्ध आती है। इसका सब द्रव्य ६१४४ में भाग देनेपर चतुर्थ गुणहानिका प्रथम निषेक ६४ आता है ।] अथवा, अन्योन्याभ्यस्त राशिले उढ़ गुणहानि प्रमाण क्षेत्रको विस्तारसे खण्डित कर एक खण्डके सिरपर शेष खण्डोंको परिपाटीसे जोड़नेपर इच्छित गुणहानिके प्रथम १ प्रतिषु |--एवंविधान संदष्टिः । १ प्रतिषु एवंविधात्र संहाष्टः। छ. वे. १७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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