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१२६] - छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४, ३२. तदियणिसेयपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे सादिरेयदिवड्डगुणहाणीए अवहिरिज्जदि । एत्थ वि पुवक्खेत्तम्मि दोफालीओ तच्छिय अवणिदे सेस पयदगावुच्छविक्खंभं दिवड्डगुणहाणिआयामं होदूण चेहदि । अवणिददोफालीसु दोपक्खेवरूवाणि ण बुप्पज्जंति, दुगुणफालिसलागमेत्तरूवेहि ऊणगुणहाणीए अभावादो । तेण सादिरेयदिवड्डरूवाणि पक्खेवो होदि । एवं जत्तिय-जतियगोवुच्छाओ उवरि चडिय भागहारो इच्छदि दिवढे तत्तिय-तत्तियमेत्तफालीओ काऊण तेरासियकमेण पक्खेवरूवसाहणं कायव्वं ।
संपहि एगगुणहाणिअद्धमेत्तं चडिय ठिदणिसेयपमाणेण सव्वदव्वं दोगुणहाणिकालेण
अवहिरिजदि । तं जहा
--पढमाणसेगविक्खंभं दिवड्डगुणहाणिआयाम खेत्तं
ठविय विक्खंभेण चत्तारिफालीओ करिय तत्थ चउत्थफालिमायामेण तिण्णिफालीओ काऊण
विशेषार्थ- कुल द्रव्य ६१४४ है । इसमें द्वितीय निषेक ४८० का भाग देनेपर १२६ आते हैं। यही कारण है कि यहां सब द्रव्यमें द्वितीय निषेकका भाग देनेपर वह साधिक डेढ़ गुणहानिसे अपहृत होता है, यह सिद्ध किया है।
___ तृतीय निषेकके प्रमाणसे सब द्रव्यके अपहृत करने पर वह साधिक डेढ़ गुणहानिसे अपहृत होता है। यहां भी पूर्व क्षेत्रमेंसे दो फालियोंको छील करके अलग करनेपर शेष क्षेत्र प्रकृत गोपुच्छ (तृतीय निषेक) प्रमाण विस्तृत और डेढ़ गुणहानि आयत होकर स्थित रहता है । अलग की हुई दो फालियोंमें दो प्रक्षेप अंक नहीं उत्पन्न होते हैं, क्योंकि, दुगुणी फालिशलाका मात्र रूपोंसे अर्थात् चार गोपुच्छविशेषोंसे रहित गुणहानिका यहां अभाव है । इस कारण यहां साधिक डेढ़ अंक प्रमाण प्रक्षेप है।
विशेषार्थ-तृतीय निषेकका प्रमाण ४४८ है । इसका ६१४४ में भाग देनेपर १३५ भाते हैं । इसीसे यहां सब द्रव्यको तृतीय निषेकके प्रमाणसे करनेपर वह साधिक डेढ़ गुणहानिसे अपहृत होता है, ऐसा कहा है।
इस प्रकार जितनी जितनी गोपुच्छायें ऊपर चढ़कर भागहार इच्छित हो, डेढ़ गुणहानि प्रमाण उतनी उतनी फालियोंको करके त्रैराशिक क्रमसे प्रक्षेप अंकोंकी सिद्धि करनी चाहिये।
अब एक गुणहानिका आधा भाग मात्र स्थान आगे जाकर स्थित निषेकके प्रमाणसे सब द्रव्यके अपहृत करनेपर वह दो गुणहानियोंके कालसे अपहृत होता है। यथा-प्रथम निषेक प्रमाण चौड़े और डेढ़ गुणहानि प्रमाण लम्बे क्षेत्रको स्थापित कर विस्तारकी अपेक्षा चार फालियां करके उनसे चतुर्थ फालिकी आयामकी ओरसे तीन
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