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४, २, ४, २९.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
[१०५ चरिमखंडं उक्कस्ससंखेजण खंडिदे तत्थ रूवूणुक्कस्ससंखज्जमेत्तखंडाणं जत्तिया समया तत्तियमेत्तजोगट्ठाणाणि उवरि जदि अत्थि तो संखेज्जभागवड्ढी होज्ज। ण च एवमणुवलंभादो। एवं पढमखंडे तिण्णिवड्डीओ । चरिमखंडे असंखेज्जभागवड्डी एक्का चेव । सेसखंडेसु असंखेज्जभागवड्डी संखेज्जभागवड्डी चेदि दो चेव वड्डीयो । जोगट्ठाणचरिमगुणहाणीए अच्छणकालो आवलियाए असंखेज्जदिभागो चेव, तत्थ असंखेज्जगुणवड्डि-हाणीणमभावादो । जदि जोगट्ठाणचरिमगुणहाणीए वि आवलियाए असंखेज्जदिभागं चेव अच्छदि तो एत्तो असंखेज्जगुणहीणाए चरिमजीवगुणहाणीए अच्छणकालो णिच्छएण [आवलियाए] असंखेज्जदिभागो चेव होदि त्ति घेत्तव्यो ।
जोगट्ठाणचरिमगुणहाणीए असंखेज्जदिभागो जीवगुणहाणी होदि त्ति कुदो णव्वदे? तंतजुत्तीदो । तं जहा- जदि जीवगुणहाणी चरिमजोगगुणहाणिमुक्कस्ससंखेज्जेण खंडिदेगखंडमेत्ता होदि तो सव्वजीवदुगुणहाणिसलागाओ दुगुणुक्कस्ससंखेज्जमेत्ता चेव होज्ज,
खण्डको उत्कृष्ट संख्यातसे खण्डित करने पर वहां एक कम उत्कृष्ट संख्यात मात्र खण्डोंके जितने समय है उतने मात्र योगस्थान यदि ऊपर हैं तो संख्यातभागवृद्धि हो सकती है। परन्तु ऐसा है नहीं, क्योंकि, इतने वे पाये नहीं जाते । इस प्रकार प्रथम खण्डमें तीन वृद्धियां होती हैं । अन्तिम खण्डमें एक असंख्यातभागवृद्धि ही होती है। शेष खण्डोंमें असंख्यातभागवृद्धि और संख्यातभागवृद्धि ये दो ही वृद्धियां होती हैं। योगस्थानकी अन्तिम गुणहानिमें रहनेका काल आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाण ही है, क्योंकि, वहां असंख्यातगणवृद्धि और असंख्यातगुणहानि नहीं पाई जाती। जब योगस्थानकी अन्तिम गुणहानि में भी आवलीके असंख्यातवें भाग काल तक ही रहता है तो इससे असंख्यातगुणी हीन अन्तिम जीवगुणहानिमें रहनेका काल निश्चयसे [ आवलीके] असंख्यातवें भाग प्रमाण ही है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये।
शंका-योगस्थानकी अन्तिम गुणहानिके असंख्यातवें भाग प्रमाण जीवगुणहानि होती है, यह बात किस प्रमाणसे जानी जाती है ?
समाधान-वह बात आगमके अनुकूल युक्तिसे जानी जाती है। यथा- यदि जीक्गुणहानि अन्तिम योगगुणहानिको उत्कृष्ट संख्यातसे खण्डित करनेपर एक खण्ड प्रमाण होती है तो सब जीवदुगुणहानिशलाकाएं दुगुणे उत्कृष्ट संख्यात प्रमाण ही होंगी,
१ प्रतिषु · गुणहाणीण ' इति पाठः ।
२ अप्रतौ ' संखेजमेताओ', काप्रतौ — संखेज्जमेत्तादो' इति पाठः। .वे.१४.
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