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________________ छक्खंडागमे वेयणाखंड [४, २, ४, २९ विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? जहण्णुक्कस्सजोगजीवविरहिदअन्तिमदोगुणहाणिदव्वमेत्तेण |६७३ । जवमज्झादो उवरिमजीवा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? उक्कस्सजोगजीवमेत्तेण ६७८ । अणुक्कस्सजीवा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? उक्कस्सजोगजीवूणजवमज्झमेत्तेण [८०१ । जवमज्झप्पहुडिं उवरि सव्वजोगजीवा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? उक्कस्सजोगजीवमेत्तण | ८०६ । सव्वजोगट्ठाणजीवा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? जवमज्झादो हेट्ठिम-- जीवमेत्तेण |१४२२|| तदो जीवजवमज्झट्ठिमअद्धाणादो उवरिमअद्धाणं विसेसाहियमिदि सिद्धं । तेणेत्थ अंतोमुहुत्तकालमच्छणसंभवो णत्थि त्ति कालजवमज्झस्स उवरिनंतोमुहुत्तद्धमच्छिदो त्ति घेत्तव्वं । चरिमे जीवगुणहाणिट्ठाणंतरे आवलियाए असंखेज्जदिभागमच्छिदो ॥ २९ ॥ अधिक हैं ? जघन्य और उत्कृष्ट योगस्थानके जीवोंसे रहित अन्तकी दो गुणहानियोंके द्रव्यका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं ६१६ + ७८ - २१ = ६७३ । इनसे यवमध्यसे आगेके जीव विशेष अधिक है। कितने अधिक हैं ? उत्कृष्ट योगस्थानके जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं ६७३ + ५ = ६७८ । इनसे अनुत्कृष्ट जीव विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं । उत्कृष्ट योगस्थानके जीवोंसे रहित यवमध्यके जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं ६७८+ (१२८ - ५) = ८०१ । इनसे यवमध्यसे लेकर आगेके सब योगस्थानोंके जीव विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं ? उत्कृष्ट योगस्थानके जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं ८०१ + ५ = ८०६। सब योगस्थानके जीव विशेष अधिक हैं। कितने अधिक हैं? यवमध्यसे नीचेके जीवोंका जितना प्रमाण है उतने अधिक हैं ८०६+६१६ = १४२२ । इसलिये जीवयवमध्यसे नीचेके स्थानसे आगेका स्थान विशेष अधिक है, यह सिद्ध हुआ। अत एव यहां चूंकि अन्तर्मुहूर्त काल रहना सम्भव नहीं है इसीलिये कालयवमध्यके ऊपर अन्तर्मुहूर्त काल तक रहा, ऐसा ग्रहण करना चाहिये। विशेषार्थ- यहां यवमध्यसे जीवयवमध्यका ग्रहण होता है या कालयवमध्यका ? इसी प्रश्नका निर्णय कर यह बतलाया गया है कि प्रकृतमें यवमध्य पदसे कालयवमध्यका ही ग्रहण करना चाहिये, क्योंकि जीवयवमध्यके उपरिम भागमें अन्तर्मुहूर्त काल तक रहना सम्भव नहीं है। अन्तिम जीवगुणहानिस्थानमें आवलिके असंख्यातवें भाग काल तक रहा ॥ २९ ॥ १ प्रतिषु : विरहिदअहियगुणं- ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only . www.jainelibrary.org www.jar
SR No.001404
Book TitleShatkhandagama Pustak 10
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1954
Total Pages552
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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