________________
१, २, ४, २८.] वेयणमहाहियारे वेयणदव्वविहाणे सामित्तं
तिण्णं दलेण गुणिदा फालिसलागा हवंति सव्वत्थ । फालिं पडि जाणेज्जो साहू पक्खेवरूवाणिं ॥ ८ ॥ फालीसख तिगुणिय अद्धं काऊण सगलरूवाणि । पुणरवि फालीहि गुणे विसेससंखाणमेदि फुड' ॥९॥ रूवूणिच्छागुणिदं पचयं सादिं गुणेउ फालीहि ।
तिण्णेगादितिउत्तरविसेससंखाणमेदि फु९ ॥ १० ॥ एवं तिण्णि-चत्तारि-पंचादिफालीओ अवणेदूणिच्छिदजोगट्ठाणजीवपमाणेण कादण णेदव्वं जाव जवमज्झजीवगुणहाणीए अद्ध गदे त्ति ।
पुणो तदित्थजोगजीवपमाणेण सगदव्वे अवहिरिज्जमाणे चत्तारिगुणहाणिट्ठाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । तं जहा- जीवजवमज्झादो तदित्थजोगणिसगो चदुब्भागूणो होदि त्ति पुविल्लखेत्तं चत्तारिफालीओ कादूण तत्थेगफालिमवणिदे सेसक्खेत्तं जीवजवमज्झतिण्णिचदुब्भागविक्खंभेण तिण्णिगुणहाणिआयामेण चेदि । अवणिदफाली वि जवमज्झचदुभागविक्खंभा तिष्णिगुणहाणिआयामा । पुणो एदमायामेण तिणि खंडाणि कादूण एदाणि तिण्णि
तीनके आधेसे गुणा करनेपर सर्वत्र फालिकी शलाकायें होती हैं। और प्रत्येक फालिके प्रति प्रक्षेप रूपोंको भले प्रकार जान लेना चाहिये (?) ॥ ८॥
फालियोंकी संख्याको तिगुणा कर फिर आधा करनेपर जो समस्त अंक प्राप्त होते हैं उन्हें फिर भी फालियोंकी संख्यासे गुणित करनेपर स्पष्ट रूपसे विशेषोंकी संख्या आती है (?) ॥ ९॥
एक कम इच्छाराशिसे गुणित प्रचयको पुनः फालियोंकी संख्यासे गुणा करनेपर स्पष्ट रूपसे तीन एक आदि तीनोत्तर विशेषोंकी संख्या आती है (?) ॥१०॥
इस प्रकार तीन, चार, पांच आदि फालियोंको अलग कर इच्छित योगस्थानके जीवोंके प्रमाणसे करते हुए यवमध्य जीवगुणहानिका अर्ध भाग वीतने तक ले जाना चाहिये।
पुनः वहांके योगस्थानके जीवोंके प्रमाणसे योगस्थानके द्रव्यके अपहृत करनेपर वह चार गुणहानिस्थानान्तरकालसे अपहृत होता है। यथा- जीवयवमध्यसे चूंकि वहांका योगनिषेक चौथा भाग कम है अतः पूर्व क्षेत्रकी चार फालियां करके उनमेंसे एक फालिको कम कर देनेपर शेष क्षेत्र जीवयवमध्यका तीन बटे चार भाग प्रमाण चौड़ा और तीन गुणहानि प्रमाण लम्बा स्थित होता है । अलग की हुई फालि भी यवमर चतुर्थ भाग प्रमाण चौड़ी और तीन गुणहानि आयामवाली होती है । पुनः इस निकाली हुई फालिके आयामकी ओरसे तीन खण्ड करके यवमध्यके चतुर्थ भाग प्रमाण चौड़े और
१ मप्रतौ ' फुधं ' इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org