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८६ छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, २, ४, २८ जहण्णपरित्तासंखेज्जगुणहाणिपमाणो होदि । एदम्हादो उवरिमगुणहाणिम्हि जहण्णपरित्तासंखेज्जस्स अद्धमत्तीओ गुणहाणीओ भागहारो होदि । एवं गंतूण जवमज्झादो' हेट्ठा चउत्थगुणहाणिपढमणिगभागहारो किंचूणअडदालगुणहाणिमेत्तो। एवं चदुवीस-बारस-छग्गुणहाणीओ उवरिमगुणहाणिपढमणिसेगाणं भागहारो होदि त्ति वत्तव्यो ।
जवमज्झपमाण सव्वद वे अवहिरिज्जमाण देसूणतिष्णिगुणहाणिहाणंतरेण कालेण अवहिरिज्जदि । तस्स संदिट्ठी | १.१ । । संपहि तदणंतरजोगजीवपमाणेण सव्वदव्वे अवहिरिज्जमाणे जवमज्झअवहारकालादो सादिरेगेण अवहिरिज्जदि । तं जहा- जबमज्झभागहारं विरलिय सव्वदव्वे समखंडं करिय दिण्णे रूवं पडि जवमज्झपमाणं पावेदि । पुणो हेट्ठा दोगुणहाणीओ विरलिय जवमज्झं समखंडं करिय दिण्णे हेटिमविरलणरूवं पडि जवमज्झपक्खेवपमाणं पावदि । पुणो एदम्मि पक्खेवे उवरिमविरलणारूवधरिदसव्वजवमज्झेसु सोहिदे सेस बिदियणिसेगपमाणं होदि ।
संपहि उवरिमविरलणमेत्तपक्खेवे पयदणिसेगपमाणेण कस्सामो- हेट्ठिमविरलण
पर वहांके निषेकका भागहार जघन्य परीतासंख्यात गुणहानि प्रमाण होता है। इससे उपरिम गुणहानिमें जघन्य परीतासंख्यातकी आधी मात्र गुणहानियां भागहार होती हैं। इस प्रकार जाकर यवमध्यसे नीचे चतुर्थ गुणहानिके प्रथम निषेकका भागहार कुछ कम अड़तालीस गुणहान मात्र होता है। इस प्रकार चौबीस, बारह और छह गुणहानियां क्रमशः उपरिम गुणहानियोंके प्रथम निषेकोंका भागहार होता है, ऐसा कहना चाहिये ।
__ यवमध्यके प्रमाणसे सब द्रव्यके अपहृत करनेपर कुछ कम तीन गुणहानि स्थानान्तरकालसे वह अपहृत होता है। उसकी संदृष्टि- १४२२ १२८ = ११.५ =७११ । अब तदनन्तर योगस्थानवर्ती जीवोंके प्रमाणसे सब द्रव्यकं अपहृत करनेपर कुछ आधिक यवमध्यके अवहारकालसे अपहृत होता है। यथा- यवमध्यके भागहारका विरलन कर सब द्रव्यको समानखण्ड करके देनेपर प्रत्येक अंकके प्रति यवमध्यका प्रमाण प्राप्त होता है। फिर नीचे दो गुणहानियोंका विरलन कर यवमध्यको समानखण्ड करके देनेपर अधस्तन विरलनके प्रत्येक अंकके प्रति यवमध्यके प्रक्षेपका प्रमाण प्राप्त होता है । पुनः इस प्रक्षेपको उपरिम विरलनके अंकोंपर रखे हुए सब यवमध्यों से कम करनेपर द्वितीय निषेकका प्रमाण होता है।
अब उपरिम विरलन मात्र प्रक्षेपोंको प्रकृत निषेकके प्रमाणसे करते हैं- एक
१ प्रतिषु जवमजादो ' इति पाठः।
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