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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ ४, १, १३.
भिण्णद सपुत्रीणं कथं पडिणियत्ती ? जिणसद्दाणुवुती दी । ण च तेसिं जिणत्तनत्थि, भग्गमहव्वसु जित्ताणुदवत्तदो । आचारांगादिहेट्ठिम अंग-पुव्वधराणं णमोक्कारो किण्ण कदो ? ण, तेर्सि पि णमोक्कारो कदो चेव, तेसिमेत्युवलंभादो । चोपुवहराणं पुव्वं णमोक्कारो किण्ण कदो ? ण, जिणवयणपच्चयद्वाणपदुप्पायणदुवारेण दसपुत्रीणं चागमहत्पपदरिसण पुव्वं तण्णमोक्कारकरणादो । सुदपरिवाडीए वा पुव्वं दसपुत्रीणं णमोक्कारो को |
णमो चोदसपुव्वियाणं ॥ १३ ॥
जिणाणमिदि एत्थाणुव । सयलसुदणाणधारिणो चोद्दसपुव्विणो' । तेसिं चोदस
शंका - भिन्नदशपूर्वियोंकी व्यावृत्ति कैसे होती है ?
समाधान - -जिन शब्दकी अनुवृत्ति होनेसे उनकी व्यावृत्ति होती है । भिन्नदशपूर्वियोंके जिनत्व नहीं है, क्योंकि, जिनके महाव्रत नष्ट हो चुके हैं उनमें जिनत्व घटित नहीं होता ।
शंका - आचारांगादि अधस्तन अंग और पूर्वके धारकों को नमस्कार क्यों नहीं
किया ?
समाधान- नहीं, उनको भी नमस्कार किया ही है, क्योंकि, वे इनमें पाये जाते हैं ।
शंका- चौदह पूर्वोके धारकोंको पहिले नमस्कार क्यों नहीं किया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, जिनवचनोंपर प्रत्ययस्थान अर्थात् विश्वास उत्पादन द्वारा दशपूर्वियोंके त्यागकी महिमा दिखलानेके लिये पूर्वमें उन्हें नमस्कार किया गया है । अथवा, श्रुतकी परिपाटीकी अपेक्षासे पहिले दशपूर्वियों को नमस्कार किया गया है ।
चौदहपूर्वक जिनको नमस्कार हो ॥ १३ ॥
यहां ' जिनोंको ' इस पदकी अनुवृत्ति आती है । समस्त श्रुतज्ञानके धारक
१ सथलागमपारगया सुदकेवलिणामसुप्पसिद्धा जे । एदाण बुद्धिरिद्धी चोदसपुव्विति णामेणं ॥ ति. प. ४, १००१. सम्पूर्ण श्रुतकेवलिता चतुर्दशपूर्वित्वम् । त. रा. ३, ३६, २.
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