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________________ ७० 01 छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १, १३. भिण्णद सपुत्रीणं कथं पडिणियत्ती ? जिणसद्दाणुवुती दी । ण च तेसिं जिणत्तनत्थि, भग्गमहव्वसु जित्ताणुदवत्तदो । आचारांगादिहेट्ठिम अंग-पुव्वधराणं णमोक्कारो किण्ण कदो ? ण, तेर्सि पि णमोक्कारो कदो चेव, तेसिमेत्युवलंभादो । चोपुवहराणं पुव्वं णमोक्कारो किण्ण कदो ? ण, जिणवयणपच्चयद्वाणपदुप्पायणदुवारेण दसपुत्रीणं चागमहत्पपदरिसण पुव्वं तण्णमोक्कारकरणादो । सुदपरिवाडीए वा पुव्वं दसपुत्रीणं णमोक्कारो को | णमो चोदसपुव्वियाणं ॥ १३ ॥ जिणाणमिदि एत्थाणुव । सयलसुदणाणधारिणो चोद्दसपुव्विणो' । तेसिं चोदस शंका - भिन्नदशपूर्वियोंकी व्यावृत्ति कैसे होती है ? समाधान - -जिन शब्दकी अनुवृत्ति होनेसे उनकी व्यावृत्ति होती है । भिन्नदशपूर्वियोंके जिनत्व नहीं है, क्योंकि, जिनके महाव्रत नष्ट हो चुके हैं उनमें जिनत्व घटित नहीं होता । शंका - आचारांगादि अधस्तन अंग और पूर्वके धारकों को नमस्कार क्यों नहीं किया ? समाधान- नहीं, उनको भी नमस्कार किया ही है, क्योंकि, वे इनमें पाये जाते हैं । शंका- चौदह पूर्वोके धारकोंको पहिले नमस्कार क्यों नहीं किया ? समाधान- नहीं, क्योंकि, जिनवचनोंपर प्रत्ययस्थान अर्थात् विश्वास उत्पादन द्वारा दशपूर्वियोंके त्यागकी महिमा दिखलानेके लिये पूर्वमें उन्हें नमस्कार किया गया है । अथवा, श्रुतकी परिपाटीकी अपेक्षासे पहिले दशपूर्वियों को नमस्कार किया गया है । चौदहपूर्वक जिनको नमस्कार हो ॥ १३ ॥ यहां ' जिनोंको ' इस पदकी अनुवृत्ति आती है । समस्त श्रुतज्ञानके धारक १ सथलागमपारगया सुदकेवलिणामसुप्पसिद्धा जे । एदाण बुद्धिरिद्धी चोदसपुव्विति णामेणं ॥ ति. प. ४, १००१. सम्पूर्ण श्रुतकेवलिता चतुर्दशपूर्वित्वम् । त. रा. ३, ३६, २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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