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________________ कदिअणियोगद्दारे करणक दिपरूवणा (જી वचिजोगि-असच्चमोसवचिजोगीसु सव्वत्थोवा आहारपरिसादणकदी | संघादणपरिसादणकदी विसेसाहिया । वेउव्वियपरिसादणकदी असंखेज्जगुणा । ओरालियसंघादणपरिसादणकदी संखेज्जगुणा । तेजा - कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । १, १, ७१. 1 कायजोगी ओघ । णवरि तेजा - कम्मइयपरिसादणकदी णत्थि । ओरालियकाय जोगी सु सव्वत्थे वा आहारपरिसादणकदी । वेउव्वियसंघादणमसंखेज्जगुणं । परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियसंघादण - परिसादणकदी अणतगुणा । तेजा - कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालिय मिस्स काय जोगीसु पंचिंदियअपज्जत्तभंगो । वेउब्वियकायजोगीसु णत्थि अप्पाबहुगं, तिष्णिपदाणं सारिच्छियादो । वेउव्वियमिस्सकायजोगीणं णारगभंगो । आहारकायजोगी णत्थि अप्पाबहुगं, चदुण्हं पदाणं सारिच्छियादो । आहारमिस्सकाय जोगी सम्वत्थोवा आहारसंघादणकदी | संघादण - परिसादणकदी संखेज्जगुणा । ओरा - वचनयोगी और असत्य- मृषावचनयोगी जीवोंमें आहारकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे इसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे वैक्रियिकशरीर की परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीरकी संघातन - परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । काय योगी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है । विशेष इतना है कि उनमें तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति नहीं होती । औदारिककाययोगियोंमें आहारकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसीकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे औदारिकशरीरकी संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव अनन्तगुणे हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातनपरिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें अपने पदोंके अल्पबहुत्व की प्ररूपणा पंचेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है। वैक्रियिककाययोगियोंमें अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, उनमें तीनों पद सदृश हैं । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंकी प्ररूपणा नारकियोंके समान है । 1 आहारककाययोगियों में अल्पबहुख नहीं हैं, क्योंकि, उनमें चारों पद समान माहारमिश्रकाययोगियोंमें आहारकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं । उनसे उसीकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे औदारिकशरीर की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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