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________________ ४४० ] छक्खंडागमे बेयणाखंड [ ४, १, ७१. गुणा । तेजा-कम्मइययसंघादणपरिसादणकदी विसेसाहिया । एवं पंचिंदियतिरिक्खतिगस्स । णवरि जहि अणतगुणं तहि असंखेज्जगुणमिदि वत्तव्वं । पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तेसु सव्वत्थोवा ओरालियसंघादणकदी | संघादण - परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । तेजा - कम्मइयसंघादणपरसादणकदी विसेसाहिया | मणुसे सव्वत्थोवा आहारसंघादणकदी । परिसादणकदी संखेज्जगुणा । [ संघादणपरिसादणकदी विसेसाहिया । तेजा - कम्मइयपरिसादणकदी संखेज्जगुणा ।] वेउव्वियसंघादणकदी संखेज्जगुणा । परिसादणकदी संखेज्जगुणा | संघादण - परिसादणकदी विसेसाहिया । ओरालियपरिसादणकदी विसेसाहिया | संघादणकदी असंखेज्जगुणा | संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । तेजा - कम्मइयसंघादण - परिसादणकदी विसेसाहिया । एवं मणुसपज्जत्तस्स वि । णवरि जहि असंखेज्जगुणं तम्हि संखेज्जगुणं कादव्वं । मणुसिणीसु सव्वत्थोवा तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी । वेउव्वियसंघादणकदी संखेज्जगुणा । परिसादणकदी उनसे तेजस और कार्मणशरीरकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार पंचेन्द्रिय तिर्येच आदि तीनके कहना चाहिये । विशेष इतना है कि जहां पर अनन्तगुणा कहा है वहांपर असंख्यातगुणा ऐसा कहना चाहिये । पंचेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्तों में औदारिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उसकी संघातन-परिशातन कृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीर की संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । मनुष्यों में आहारकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उसकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । [ उनसे उसकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं । ] उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे उसीकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे उसीकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं। उनसे उसीकी संघातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे उसीकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन परिशातनकृति युक्त जीव विशेष अधिक हैं । इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्तकके भी कहना चाहिये । विशेष इतना है कि जहां असंख्यातगुणा है वहां संख्यातगुणा करना चाहिये । मनुष्यनियोंमें तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव सबसे स्तोक हैं | उनसे वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृति युक्त जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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