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________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगदारे करणकदिपरूषणा (४२१ संघादण-परिसादणकदीए एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पुवकोडी देसूणा । [ आहारतिण्णिपदाणं ओघ । णवरि एगजीवं पडुच्च उक्कस्सेण पुव्वकोडी देसूणा । ] तेजा-कम्मइयदोण्णिपदा ओघ ।। सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदाण मणपज्जवभंगो। णवरि आहारतिगस्स संजदमंगो । परिहारसुद्धिसंजदेसु सव्वपदाणं णत्थि अंतरं । सुहुमसांपराइयाणं सगपदाणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण छम्मासा । एगजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं । संजदासजदाणं मणपज्जवभंगो । असंजदाणमोरालिय-वेउब्वियतिण्णिपदाणं तेजा-कम्मइयएगपदमोघं । चक्खुदंसणीण तसपजत्तभंगो । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी णस्थि । अचक्खुदंसणीसु ओघं । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी णत्थि । ओहिदसणी ओहिणाणिभंगो । केवलदसणी केवलणाणिभंगो। किण्ण-णील-काउलेस्सिएसु ओरालियसंघादणकदीए ओरालिय-वेउब्वियपरिसादणकदीए णाणेगजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीव पहुच्च कृतिका अन्तर एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे कुछ कम पूर्वकोटि काल प्रमाण होता है । [ आहारकशरीरके तीनों पदोंका अन्तर ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण है।] तैजस और कार्मणशरीरके दोनों पदोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। सामायिक-छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत जीवोंकी प्ररूपणा मनःपर्ययज्ञानियोंके समान है । विशेष इतना है कि आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा संयतोंके समान है। ___ परिहारशुद्धिसंयतोंमें सब पदोंका अन्तर नहीं होता। सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयतोंमें अपने पदोंका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह मास प्रमाण होता है । एक जीवकी अपेक्षा उनका अन्तर नहीं होता। संयतासंयतोंकी प्ररूपणा मनःपर्ययज्ञानियोंके समान है। असंयत जीवों में औदारिक और वैक्रियिकशरीरके तीनों पद तथा तैजस व कार्मणशरीरके एक पदकी प्ररूपणा ओघके समान है। चक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा त्रस पर्याप्तोंके समान है। विशेष इतना है कि उनमें तैजस व कार्मणशरीरकी परिशातनकृति नहीं होती । अचक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेष इतना है कि उनमें तैजस और कार्मणशरीरकी परिशातनकृति नहीं होती। अवधिदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है। केवलदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा केवलज्ञानियोंके समान है। कृष्ण, नील और कापोतलेश्यावाले जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका तथा औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृतिका नाना व एक जीवकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा नाना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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