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________________ १, १, ७१.] . कदिक्षणियोगदारे करणकदिपरूवणा [१०९ एवं बादरेइंदियाणं । णवरि ओरालियसंघादणकदीए जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं । एवं बादरेइंदियपज्जत्ताणं । णवरि ओरालियसंघादणकदीए जहण्णेण अंतोमुहुत्तं तिसमऊणं । एवं सेसपदाणं । णवरि जम्हि पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो तम्हि संखेज्जाणि वाससहस्साणि । बादरेइंदियअपज्जत्तेसु ओरालियसंधादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं । सेसस्स पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो। सुहुमेइंदिएसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं चदुसमऊणं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं दुसमयाहियं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णस्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारि समया। तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए णस्थि अंतरं । एवं पज्जत्तापज्जत्ताणं । णवरि पजत्तएसु ओरालियसंघादणकदीए एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं चदुसमऊणं । बेइंदिय तेइंदिय-चदुरिंदियाणं तेसिं पज्जत्ताणं च ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं ......................... इसी प्रकार बादर एकेन्द्रियोंकी प्ररूपणा है । विशेष इतना है कि औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर जघन्यसे तीन समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तोंके कहना चाहिये। विशेष इतना है कि इनमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर जघन्यसे तनि समय कम अन्तर्मुहूर्त मात्र होता है। इसी प्रकार शेष पदोंकी प्ररूपणा करना चाहिये। विशेष इतना है कि जहांपर पल्योपमका असंख्यातवां भाग कहा गया है वहांपर संख्यात हजार वर्ष कहना चाहिये। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। शेष पदोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तोंके समान है। सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे चार समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण और उत्कर्षसे दो समय अधिक अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय होता है। तैजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका अन्तर नहीं होता। इसी प्रकार सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त व अपर्याप्तोंकी प्ररूपणा करना चाहिये । बिशेष इतना है कि पर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिका अन्तर एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे चार समय कम अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और उनके पर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी ..क. ५२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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