SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 433
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १.१] छक्खंडागमे यणाखंड [.,,.. भंतोमुहुत्तं तिसमऊणं, उक्कस्सेण तिरिक्खभंगो। ओरालिय-वेउब्धियपरिसादणकदीए वेउब्धियसंघादणपरिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्ण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि पुवकोडिपुधत्तेणव्वहियाणि । एवं वेउन्वियसंघादणकदीए । णवरि णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए तिरिक्खभंगो । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए णस्थि अंतरं । - पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तेसु ओरालियसंघादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं तिसमऊणं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं समयाहियं । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्लेण तिण्णि समया। तेजा-कम्मइयसंपादण-परिसादणकदीए तिरिक्खोघं । ___ मणुसतिगस्स पंचिंदियतिरिक्खतिगभंगो । णवरि आहारतिष्णिपदाणं णाणाजीवं है, और उत्कर्षसे उसकी प्ररूपणा तिर्यचोंके समान है। औदारिक व वैक्रियिकशरीरकी परिसातनकृति तथा क्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीयोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं होता। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम काल प्रमाण होता है। इसी प्रकार वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिके अन्तरकी प्ररूपणा करना चाहिये । विशेष इतना है कि नाना जीवोंकी अपेक्षा उसका भन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त काल प्रमाण होता है। औदारिक शरीरकी संघातन-परिशातनकृतिकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन परिशातनकृतिका अन्तर नहीं होता। पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तों में औदारिकशरीरकी संघातमकृतिका अन्तर नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहर्त काल प्रमाण होता है। एक जीक्की अपेक्षा जघन्यसे तीन समय कम क्षुदभवग्रहण प्रमाण और उत्कर्षसे एक समय अधिक अन्तर्मुहूर्त प्रमाण होता है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशासनकृतिका नाना जीवों की अपेक्षा अन्तर नहीं होता । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दीन समय होता है। तैजस व कार्मणशरीरकी संघासन-परिशातन्कृतिके अन्तरकी प्ररूपमा सामान्य तिर्यों के समान है। ममुष्य, मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियोंकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंच, पंचेन्द्रिय तिर्वच पर्याप्त और पंचेन्द्रिय तिर्येच योनिमतियोंके समान है। विशेष इतना है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy