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________________ ३९४] छक्खंडागमे वेयणाखं [१, १,७१. वेउव्वियकायजोगीसु वेउविय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए मणजोगिभंगो । वेउव्वियमिस्सकायजोगीसु वेउब्वियसंघादणकदीए देवभंगो । वेउब्विय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुतं । . आहारकायजोगीसु ओरालियपरिसादणकदी आहार-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च एगजीवं पडुच्च जाणेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । आहारमिस्सकायजोगीसु ओरालियपरिसादणकदी आहार-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीणाणाजीवं पडुच्च एगजीवं' पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । आहारसंघादणकदी ओघो। - कम्मइयकायजोगीसु ओरालियपरिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च जहण्गेण तिण्णि समया, उक्कस्सेण संखेज्जा समया । एगजीवं पडुच्च जहण्णुक्कस्सेण तिण्णि समया । तेजाकम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एग वैक्रियिककाययोगियों में वैक्रियिक, तैजस और कार्मणशरीर सम्बन्धी संथातनपरिशातनकृतिकी प्ररूपणा मनयोगियोंके समान है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगियों में वैक्रियिकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा देवोंके समान है । वैक्रियिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल है । आहारककाययोगियों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृति तथा आहारक, तेजस और कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा और एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल है । आहारकमिश्रकाययोगियोंमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति तथा आहारक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी व एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल है। आहारकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा ओघके समान है। कार्मणकाययोगियोंमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे तीन समय और उत्कर्षसे संख्यात समय काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य व उत्कर्षसे तीन समय काल है। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और १ प्रतिषु · पडुच्च सयद्धा । एगजीवं ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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