SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 415
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८८] छक्खंडागमे बेयणाखंड [१, १, ७१. परिसादणकदी जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि । बादरेइंदियअपज्जताणं पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तभंगो । णवरि ओरालियसंघादणकदी ओघो। सुहुमेइंदिएसु भोरालियसंघादणकदी तिरिक्खभंगो । संघादण-परिसादणकदी केवचिरं कालादो होदि ? गाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं चदुसमऊणं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं समऊणं । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी गाणाजीव पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा। सुहुमेइंदियपज्जत्तेसु ओरालियसंघादणकदीए तिरिक्खभंगो । संघादण-परिसादपकदी पाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीव पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं चदुसमऊग, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं समऊणं । तेजाकम्मइयसंघादण-परिसादणकदी णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । सुहुमेइंदियअपज्जत्ताणं बादरेइंदियअपज्जत्तभंगो । णवरि भोरालियसंघादण-परिसादणकदी जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं चदुसमऊणं । बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं तेसिं पजत्ताणं ओरालियसंघादणकदीए पंचिंदियतिरिक्ख शरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका जयन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे संख्यात हजार वर्ष काल है। बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंमें कालप्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंच अपर्याप्तकि समान है। विशेष इतना है कि इनमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिके कालकी प्ररूपणा भोघके समान है। सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिके कालकी प्ररूपणा तिर्यचौके समान है । औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे चार समय कम क्षुद्रभवग्रहण तथा उत्कर्षसे एक समय कम अन्तर्मुहूर्त काल है। तेजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे असंख्यात लोक प्रमाण काल है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तोंमें औदारिकशरीरकी संघातनकृतिकी प्ररूपणा तिर्यचौके समान है। संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे चार समय कम अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे एक समय कम अन्तर्मुहूर्त काल है। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका नाना जीवोंकी अपेशा काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल है। सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तौकी प्ररूपणा बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंके समान है। विशेष इतना है कि औदारिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृतिका जघन्य काल चार समय कम क्षुद्रभवग्रहण प्रमाण है। द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और उनके पर्याप्त जीवोंकी औदारिकशरीर सम्बन्धी संघातनकृतिकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है। संघातन-परिशातन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy