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________________ १, १, १.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा कदी आहारतिष्णिपदा तेजा-कम्मइयपरिसादणकदी खेत्तर्भगों । औरालियपरिसादणकदी बोषो । ओरालियसंघादण-परिसादणकदीए वेउव्वियसंघादण-परिसादणकदीण छचोदसभागा देसूणा । वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदीए अट्ठचोदसभागा देसूणा । तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदीए अट्ठचोदसभागा देसूणा केवलिभंगो वा । खइयसम्मादिट्ठीसु ओरालियसंपादणसंघादणपरिसादणकदी' वेउव्वियसंघादण-परिसादणकदि-आहारतिण्णिपदा तेजा-कम्मइयपरिसादणकदीण खत्तभंगो । ओरालियपरिसादणकदी ओघो । वेउव्वियसंघादण-परिसादणकदीए अट्ठचौदसभागा देसूणा । तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए अट्ठचोद्दसभागा देसूणा केवलिभंगो वा । वेदगसम्मादिट्ठीणं ओहिभंगो। उवसमसम्मादिहि-सम्मामिच्छादिट्ठीसु ओरालियपरिसादण-संघादणपरिसादणकदीणं वेउब्वियसंघादण-परिसादणकदीण खेतं । वेउब्विय-तेजा शरीरके तीनों पद तथा तैजस व कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। औदारिकशरिकी संघातन-परिशातनकृति तथा वैक्रियिकशरीरको संघातन व परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम छह बटे चौदह भाग क्षेत्र स्पर्श किया गया है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं। अथवा इनकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में औदारिकशरीरकी संघातन व संघातन-परिशासनकाति, वैक्रियिकशरीरकी संघातन व परिशातनकृति, आहारकशरीरके तीनों पद तथा तैजस व कार्मणशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। वैक्रियिकशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं। तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम । माठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । अथवा इनकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानियोंके समान है। उपशमसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्याडष्टि जीवोंमें औदारिकशरीरकी परिशातन व संघातन-परि -परिशानतकृति बैकियिकशरीरकी संघातन व परिशातनकृतिवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। १ -जापत्योः ओरालिय० संघा० संधादणकदी परि० ', कापतौ · ओरालिय० संघादण. परि० । पति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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