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________________ [३७७ १, १,७१.] कदिअणियोगद्दारे करणकदिपरूवणा कदीहि छचोद्दसभागा देसूणा । वेउव्विय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए अट्टचोद्दसभागा वा देसूणा । मणपज्जवणाणीसु अप्पणो सवपदाणं खेत्तं । संजदेसु ओरालियपरिसादणकदीए तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए केवलिभंगो । सेसपदा खेत्तं । सामाइयछेदोवट्ठावणसुद्धिसंजद-परिहारसुद्धिसंजद-सुहुमसांपराइयसुद्धिसंजदेसु अप्पप्पणो पदा खेतं । संजदासजदा अप्पप्पणो पदाणं मणपजवभंगो । असंजदाणं मदि-अण्णाणिभंगो । चक्खुदंसणीणं पुरिसवेदभंगो । अचखुदंसणीणं कोहभंगो । ओहिदसणीणं ओहिणाणिभंगो। किण्ण-णील-काउलेस्सिएसु ओरालियसंघादण-संघादणपरिसादणकदीए तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदीए सव्वलोगो । ओरालियपरिसादणकदीए वेउब्वियतिण्णिपदाणं तिरिक्खभंगो। तेउलेस्सिएसु ओरालियसंघादणकदी आहारतिण्णिपदा खेत्तं । ओरालियपरिसादण-संघादण कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं। वैक्रियिक, तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये गये हैं । मनःपर्ययज्ञानियोंमें अपने सब पदोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। सयत जीवों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीरको संघादन-परिशातनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है। शेष पदोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। सामायिक छेदोपस्थापनाशुद्धिसंयत, परिहारशुद्धिसंयत और सूक्ष्मसाम्परायिकशुद्धिसंयत जीवोंमें अपने अपने पदोकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। संयतासंयत जीवों में अपने अपने पदोंकी प्ररूपणा मनःपर्ययज्ञानियोंके समान है । असंयत जीवोंकी प्ररूपणा मतिअज्ञानियों के समान है। चक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा पुरुषवेदियोंके समान है । अचक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा क्रोधकषायी जीवोंके समान है । अवघिदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। कृष्ण, नील व कापोत लेश्यावाले जीवोंमें औदारिकशरीरकी संघातन व संघातन-परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातनपीरशातनकृति युक्त जीवों द्वारा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। इनमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति व वैक्रियिकशरीरके तीनों पद युक्त जीवोंकी परूपणा तिर्यंचोंके समान है। तेज लेश्यावाले जीवों में औदारिकशरीरकी संघातनकृति तथा आहारकशरीरके तीनों पदोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। औदारिकशरीरकी परिशातन व संघातन परिशातनकृति युक्त जीवों १ प्रतिषु ' मणभंगो' इति पाठः। २ अप्रतौ ‘तिरि० वेउत्रिय. ', आप्रती · तिरि० वेउ०', कापतौ । तिरिक्ख० वेउविय.' इति पाठः । छ. क. ४८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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