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________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगदारे करणकदिपरूवणा १०५ ज्जदिभागो सव्वलोगो वा । एवं वेउब्धियपरिसादणकदीए वि। उब्बिय-तेजा-कम्मइया संघादण-परिसादणकदीए लोगस्स असंखेज्जदिभागो अट्ठचोदसभागा देसूणा सव्कलोगो का। आहारदोण्णिपदाणं खेत्तभंगो। कायजोगीणमोघो । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणं णस्थि । ओरालियकायजोगीसु ओरालिय-तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदीए सबलोगो । ओरालिय परिसादणकदीए वेउव्वियतिण्णिपदाणं लिरिक्खमंगो। आहारपरिसादणकदीए खेत्तभंगो। मोरालियमिस्सकायजोगीसु अप्पणो तिण्णिपदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सबलोगो । वेउम्बियकायजोगीसु अप्पणी पदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? अट्ठ-तेरह-चौदसभागा वा देसूणा । वेउब्वियमिस्सकायजोगीणं खेत्तभंगा। आहारदुगस्स खेत्तभंगो । कम्मइयकायजोगीण ओरालियपरिसादणकदीए केवलिभंगो। तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदीए केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सव्वलोगा। इस्थिवेदस्स ओरालियसंघादणकदीए खेत्तभंगा। परिसादण संघादणपरिसादणकदीहि परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा लोकका असंख्यातवां भाग अथवा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। इसी प्रकार वैक्रियिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीवोंकी भी प्ररूपणा करना चाहिये। वैक्रियिक तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशासनकृति यत जीवो हारा लोकका असंख्यातवां भाग, कुछ कम आठ बटे चौदह भाग अथवा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। आहारकशरीरके दो पद युक्त जीवोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। काययोगियोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेष इतना है कि इनके तैजस र कार्मणशरीरकी परिशातनकृति नहीं होती । औदारिककाययोगियों में औदारिक, तैजस क कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। भौदारिकशरीरकी परिशातनकृति तथा वैक्रियिकशरीरके तीनों पद युक्त जीवोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। आहारकशरीरकी परिशातनकृति युक्त. जीवों की प्ररूपशा क्षेत्र प्ररूपणाके समान है। औदारिकमिश्रकाययोगियों में अपने तीनों पद युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है ? उक्त जीवों द्वारा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। वैक्रियिककाययोगियों में अपने पदों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गयाहै? उक्त जीयो द्वारा कुछ कम आठव तेरह बटे चौदहभागस्पर्श किये गये हैं। चौक्रियिकमिश्रकाययोगियोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। आहारक और आहारमिश्रकाययोगियोंकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। कार्मणकाययोगियों में औदारिकशरीरकी परिशातनाति युक्त जीवोंकी प्ररूपणा केवलियोंके समान है। इनमें तैजस घ कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पर्श किया गया है ? उक्त जीवों द्वारा सर्व लोक स्पर्श किया गया है। स्त्रीवेदियोंमें औदारिकशरीरकी संघासनकृति युक्त जीवोंकी प्ररूपमा क्षेत्रमरूपणाके समान है। उक्त जीवों में औदारिकशारीरकी परिशातमकृति र संघातमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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