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________________ १९२] छक्खंडागमे वेयणाखरं [१, १,७१. जोगी ओघ । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणं णत्थि । [ओरालियकायजोगीसु] भोरालियसंघादण-[संपादण] परिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केत्तिया ? अणंता । ओरालियपरिसादणकदी वेउव्वियतिण्णिपदा असंखेज्जा । आहारपरिसादणकदी संखेज्जा । ओरालियमिस्सकायजोगीणं सुहुमेइंदियभंगो । वेउन्वियकायजोगीसु दोण्णिपदा असंखेज्जा । एवं वेउब्धियमिस्सकायजोगीणं । णवरि संघादणकदी अस्थि । आहारकायजेगि-आहारमिस्सकायजोगीणं तिण्णि-चत्तारिपदा संखेज्जा । कम्मइयकायजोगीणं तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी केत्तिया ? अणता । ओरालियपरिसादणकदी संखेज्जा। इथिवेदाणं पंचिंदियतिरिक्खभंगो । एवं पुरिसवेदाणं । णवरि आहारतिण्णिपदा संखेज्जा । णवंसयवेदाणं तिरिक्खभंगो। अवगदवेदेसु चत्तारिपदा संखेज्जा । एवमकसाइकेवलणाणि-केवलदंसणि-जहाक्खादसुद्धिसंजदाणं वत्तव्वं । चत्तारिकसायाणं कायजोगिभंगो । शातन व संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव संख्यात हैं। काययोगियोंकी प्ररूपणा मोधके समान है । विशेष इतना है कि इनमें तैजस व कार्मण शरीरकी परिशातनकृति महीं होती। [औदारिककाययोगियोंमें ] औदारिकशरीरकी [संघातन व] संघातनपरिशातनकृति तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव कितने हैं? अनन्त हैं। इनमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति व वैक्रियिकशरीरके तीनों पद युक्त जीव असंख्यात हैं । आहारकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यात हैं। औदारिकमिश्रकाययोगियोंकी प्ररूपणा सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान है। वैक्रियिककाययोगियों में दोनों पद यक्त जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंके कहना चाहिये । विशेषता इतनी है कि इनके संघातनकृति होती है। आहारकाययोगी और आहारमिश्रकाययोगियों में तीन व चार पद युक्त जीव संख्यात हैं। कार्मणकाययोगियों में तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति युक्त जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । इनमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति युक्त जीव संख्यात हैं। स्लोवेदियोंके द्रव्यप्रमाणकी प्ररूपणा पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंके समान है। इसी प्रकार पुरुषवेदियोंकी प्ररूपणा है। विशेषता इतनी है कि आहारकशरीरके तीनों पद युक्त जीव संख्यात हैं । नपुंसकवेदियोंकी प्ररूपणा तिर्यंचोंके समान है। अपगतवेदियों में चार पद युक्त जीव संख्यात हैं। इसी प्रकार अकषायी, केवलज्ञानी, केवलदर्शनी और यथाख्यातशुद्धिसंयत जीवोंके कहना चाहिये। चार कषाय युक्त जीवोंकी प्ररूपणा काययोगियोंके समान है। मति और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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