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________________ १, १, ५१.] कदिअणियोगदारे करणकदिपावणा मोघभंगो । णवरि तेजा-कम्मइयपरिसादणं णत्थि, अजोगिं मोत्तूण अण्णस्य तस्साभावादो । ओरालियकायजोगीसु अत्थि ओरालियसरीरपरिसादणकदी संघादण-परिसादणकदी वेउन्वियतिण्णिपदा आहारपरिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादण-परिसादणकदी च । ओरालियमिस्सकायजोगीण तसअपज्जत्तभंगो । वे उब्वियकायजोगीसु अत्थि वेउव्विय-तेजा-कम्मइय-संघादण-परिसादणकदी । वेउव्वियमिस्सकायजोगीसु अत्थि वेउव्वियसंघादणकदी संघादण-परिसादणकदी तेजा-कम्मइयसंघादणपरिसादणकदी च । आहारकायजोगीसु अस्थि ओरालियपरिसादणकदी आहार-तेजा-कम्मइयसंवादण-परिसादणकदी च । एवं आहारमिस्सकायजोगीसु । णवरि आहारसंघादणं पि अस्थि । कम्मइयकायजोगीसु अस्थि ओरालियपरिसादणकदी, लोगमावूरिदकेवलीसु तदुवलंभादो । तेजा-कम्मइयसंवादण-परिसादणकदी च अत्थि । इत्थि-णqसयवेदाणं तिरिक्खोघभंगो । पुरिसवेदाणमोधभंगो। णवरि तेजा-कम्मइय ...................................... काययोगियोंकी प्ररूपणा ओघके समान है। विशेष इतना है कि उनमें तैजस और कार्मण शरीरकी परिशातनकृति नहीं होती, क्योंकि, अयोगकेवलीको छोड़कर अन्य मार्गणाओं में इस कृतिका अभाव है। औदारिककाययोगियों में औदारिकशरीरकी परिशातनकृति व संघातन-परिशातनकृति, वैक्रियिकशरीरके तीनों पद, आहारकशरीरकी परिशातनकात, तथा तैजस व कार्मणशरीरकी संघातन-परिशातनकृति होती है। औदारिकमिश्रकाययोगियोंकी प्ररूपणा त्रस अपर्याप्तोंके समान है। ___ वैक्रियिककाययोगियों में वैक्रियिकशरीरकी तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृति होती है । वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंमें वैक्रियिकशरीरकी संघ्रातनकृति व संघातन परिशातनकृति तथा तैजस व कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृति होती है। आहारकाययोगियों में औदारिकशरीरकी परिशासनकृति तथा आहारक, सैजसच कार्मण शरीरकी संघातन-परिशातनकृति होती है। इसी प्रकार आहारकमिश्रकाययोगियों में समझना चाहिये । विशेष केवल इतना है कि इनमें आहारकशरीरकी संघातनकृति भी होती। कार्मणकाययोगियोंमें औदारिकशरीरकी परिशातनकृति होती है, क्योंकि लोकपूरणसमुद्घातको प्राप्त हुए केवलियों में उक्त कृति पायी जाती है। उनमें तैजसव कार्मण शरीरकी संघातन परिशातनकृति भी होती है। स्त्री और नपुंसक बेदियोंकी प्ररूपणा तिर्यंच ओघके समान है। पुरुषवेदियोकी प्ररूपणा ओधके समान है। विशेष इतना है कि इनके तैजस वकार्मण शरीरकी परिशासन १ अप्रतौ 'आहारसंगादाण ', काप्रतौ · आहारमिरससंघादणं' इति पार। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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