SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १, १, ७१.] कदिअणियोगदारे करणकदिपरूवणा [ ३५१ रेयदुगुणा, चदुअघादिकम्मपोग्गलखंधादो सत्तमपुढविणेरइयचरिमसमयअट्ठकम्मक्खंधस्स सादिरेयदुगुणत्तदंसणादो । सत्थाणप्पाबहुगं गदं । परत्थाणे पयदं । सव्वत्थोवा ओरालियस्स जहणिया संघादणकदी। संघादणपरिसादणकदी जहण्णिया असंखेज्जगुणा । परिसादणकदी जहणिया असंखेज्जगुणा । ओरालियस्स उक्कस्सिया संघादणकदी असंखेज्जगुणा । उक्कस्सिया परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । उक्कस्सिया संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया । वेउव्वियस्स जहणिया संघादणकदी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो। जहणिया तस्सव संघादणपरिसादणकदी असंखेज्जगुणा । परिसादणकदी जहणिया असंखेज्जगुणा । उक्कस्सिया संघादणकदी असंखेज्जगुणा । उक्कस्सिया परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । उक्कस्सिया संघादण-परिसादणकदी विसेसाहिया। आहारयस्स जहणिया संघादणकदी असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? सेडीए असंखेज्जदिभागो । जहणिया संघादण-परिसादणकदी असंखेज्जगुणा । उक्कस्सिया' संघादणकदी असंखेज्जगुणा। जहणिया परिसादण संघातन-परिशातनकृति साधिक दूनी है, क्योंकि, चार अघातिया कर्मपुद्गलस्कन्धोंसे सातवीं पृथिवीके नारकीके अन्तिम समयमें प्राप्त आठ कर्मोंके स्कन्ध साधिक दूने देखे जाते हैं। इस प्रकार स्वस्थान अल्पबहुत्व समाप्त हुआ। परस्थानमें अल्प-बहुत्वका प्रकरण है- औदारिकशरीरकी जघन्य संघातनकृति सबमें स्तोक है। इससे इसीकी जघन्य संघातन-परिशातनकृति असंख्यातगुणी है। इससे इसीकी जघन्य परिशातनकृति असंख्यातगुणी है। इससे औदारिकशरीरकी उत्कृष्ट संघातनकृति असंख्यातगुणी है। इससे इसीकी उत्कृष्ट परिशातनकृति असंख्यातगुणी है। इससे इसीकी उत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति विशेष अधिक है। इससे वैक्रियिक शरीरकी जघन्य संघातनकृति असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। इससे वैक्रियिकशरीरकी ही संघातन-परिशातनकृति असंख्यातगुणी है । इससे इसीकी जघन्य परिशातनकृति असंख्यातगुणी है। इससे इसीकी उत्कृष्ट संघातनकृति असंख्यातगुणी है । इससे इसीकी उत्कृष्ट परिशातनकृति असंख्यातगुणी है। इससे इसीकी उत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति विशेष अधिक है। इससे आहारकशरीरकी जघन्य संघातनवांत असख्यातगुणी है। गुणकार क्या है? जगश्रेणीका असंख्यातवां भाग गुणकार है। इससे इसीकी जघन्य संघातन-परिशातनकृति असंख्यातगुणी है। इससे इसीकी उत्कृष्ट संघातनकृति असंख्यातगुणी है। इससे इसीकी जघन्य १ अप्रतौ । -कदी विसेसाहिया तेजइयरस उक्कस्सिया' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy