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________________ ३१८ ] छक्खंडागमे वेयणाखंड [ ४, १, ७१. वेव्वियस्स जहणिया संघादण - परिसादणकदी कस्स ? अण्णदरस्स बादरवाउजीवस्स । जो सव्वलहुँ पज्जत्तिं गदो, सव्वलहुमुत्तरं विविदो, जेण पढमसमयउत्तरं विउव्विदप्हुडि जहण्णएण जोगेण आहारिदं, जहण्णियाए वड्डीए वड्डिदं, हेट्ठिल्लीण ट्ठिदीणं णिसेयस्स उक्कस्सपदं, उवरिल्लीणं द्विदीणं [ णिसेयस्स ] जहण्णपदं, तस्स दुसमयविउव्विदस्स जद्द - ण्णिया वेउव्वियसंघादण - परिसादणकदी । तव्वदिरित्ता अजहण्णा । सुगमं । आहारसरीरस्स उक्कस्सिया संघादणकदी कस्स ? अण्णदरस्स संजदस्स आहारयसरीरस्स पढमसमय आहारयस्स उक्कस्सजोगिस्स उक्कस्सा आहारसरीरस्स संघादणकदी । तव्वदिरित्ता अणुक्कस्सा । सुगमं । तस्सेव उक्कस्सिया परिसादणकदी कस्स ? अण्णदरस्स संजदस्स आहारसरीरस्स । जेण पढमसमयआहारय पहुडि उक्कस्सेण जोगेण आहारिदं, उक्कस्सियाए वड्डीए वड्डिद, उक्कस्साई वैक्रियिकशरीरकी जघन्य संघातन-परिशातनकृति किसके होती है ? अन्यतर बादर वायुकायिक जीवके । जो सर्वलघु कालमें पर्याप्तिको प्राप्त हुआ है, जिसने सर्वलघु कालमें उत्तर शरीरकी विक्रिया की है, जिसने उत्तर शरीरकी विक्रिया करनेके प्रथम समयसे लेकर जघन्य योगसे आहारको ग्रहण किया है, जो जघन्य वृद्धि से वृद्धिको प्राप्त हुआ है, तथा जो अधस्तन स्थितियोंके निषेकके उत्कृष्ट पदको और उपरिम स्थितियोंके निषेकके जघन्य पदको करता है, उस किसी एक बादर वायुकायिक जीवके विक्रिया करनेके दूसरे समय में जघन्य वैक्रियिक शरीरकी संघातन-परिशातन कृति होती है । इससे भिन्न अजघन्य संघातन-परिशातन कृति है । यह कथन सुगम है । आहारकशरीरकी उत्कृष्ट संघातनकृति किसके होती है ? आहारकशरीरवाले अन्यतर संयतके आहारक होनेके प्रथम समयमै उत्कृष्ट योगले संयुक्त होनेपर उत्कृष्ट आहारकशरीरकी संघातनकृति होती है । इससे भिन्न अनुत्कृष्ट संघातनकृति है । यह कथन सुगम है । आहारकशरीरकी उत्कृष्ट परिशातनकृति किसके होती है ? अन्यतर आहारकशरीरी संयतके | जिसने आहारकशरीर युक्त होनेके प्रथम समयसे लेकर उत्कृष्ट योगके द्वारा आहार ग्रहण किया है, जो उत्कृष्ट वृद्धिसे वृद्धिको प्राप्त हुआ है, जो उत्कृष्ट योग १ प्रतिषु विउव्विदो अच्छिदो सन्त्र ' इति पाठः । " २ प्रतिषु ' दीणं जह ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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