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________________ ३३२ छक्खंडागमे वैयणाखंड 10, १,७१. मणुस्सेसुप्पज्जिय अणुप्पण्णसंतोसस्स बहुओरालियपदेसग्गहणाभावादो । अवसेस सुत्तटुं वग्गणाए परुवइस्सामो । एत्थ परिसदमाणउक्कस्सदव्वं दिवड्डसमयपबद्धमत्तं होदि, समयपबद्धस्स बिदियणिसेयप्पहुडि सव्वणिसेयाणं तत्थुवलंभादो । ओरालियसरीरस्स उक्कस्सिया संघादण-परिसादणकदी कस्स ? एदस्स एसो चेव भालावो वत्तव्यो। तस्स चरिमसमयतब्भवत्थस्स उक्कस्सजोगिस्स उक्कस्सिया । तव्व. दिरित्ता अणुक्कस्सा। सुगमं । एत्थ संचओ दिवड्डसमयपत्रद्धमेत्तो असंखेजसमयपबद्धमेत्तो वा ओरालियसरीरस्स जहणिया संघादणकदी कस्स ? अण्णदरस्स सुहुमस्स अपज्जत्तस्स पत्तेयसरीरस्स अणादियलंभे पदिदस्स पढमसमयतब्भवत्थस्स पढमसमयआहारयस्स सव्वजहण्णजोगस्स ओरालियसरीरस्स जहणिया संघादणकदी । तवदिरित्ता अजहण्णा । अणा असंतोष उत्पन्न न होनेसे बहुत औदारिक प्रदेशोंका ग्रहण नहीं होता। शेष सूत्रार्थ वर्गणा खण्डमें कहेंगे । यहां निर्जराको प्राप्त होनेवाला उत्कृष्ट द्रव्य डेढ़ गुणहानिगुणित समयप्रबद्ध मात्र होता है, क्योंकि, समयप्रबद्धके द्वितीय निषेकसे लेकर सब निषेक वहां पाये जाते हैं। औदारिकशरीरकी उत्कृष्ट संघातन परिशातनकृति किसके होती है ? इसके यही आलाप कहना चाहिये । यह जीव जब विवक्षित भवके अन्तिम समय में स्थित होता है और उत्कृष्ट योगवाला होता है तब उसके औदारिक शरीरकी उत्कृष्ट संघातन-परिशातनकृति होती है । इससे भिन्न अनुत्कृष्ट संघातन परिशातनकृति होती है। यह कथन सुगम है। यहां संचय डेढ़ गुणहानिगुणित समयप्रबद्ध मात्र अथवा असंख्यात समयप्रबद्ध मात्र होता है। __ औदारिक शरीरकी जघन्य संघातनकृति किसके होती है ? जो कोई जीव सूक्ष्म है, अपर्याप्त है, प्रत्येकशरीरी है, अनादिलम्भमें पतित है, अर्थात् जिसने अनेक वार इस पर्यायको ग्रहण किया है, प्रथम समयमै तद्भवस्थ हुआ है, प्रथम समयसे आहारक है और सबसे जघन्य योगवाला है। उसके औदारिक शरीरकी जघन्य संघातनकृति होती है। इससे भिन्न अजघन्य संघातनकृति होती है। १ अप्रतौ · संतो परस', आरतौ 'संतापस्स', कापतो ' संतापस्स', 'मप्रतौ तु स्वीकृतपाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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