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________________ ३२२] छक्खंडागमे वेयणाखंडं '[४, १, ६७. .. गंथकदी चउव्विहा णाम-ट्ठवणा-दव्व-भावगंथकदिभेएण। णाम-ट्ठवणाओ सुगमाओ। दव्वगंथकदी दुविहा आगम-णोआगमभेएण । आगमदव्वगंथकदी णोआगमजाणुगसरीरभवियगंथकदीओ च सुगमाओ, बहुसो उत्तत्तादो। जा सा तव्वदिरित्तदव्वगंथकदी सा गंथिम-वाइम-वेदिम-पूरिमादिभेएण अणेयविहा । कधदेसिं गंथसण्णा ? ण, एदे जीवो बुद्धीए अप्पाणम्मि गुंथदि' त्ति तेसिं गंथत्तसिद्धीदो । जा सा भावगंथकदी सा दुविहा आगमणोआगमभावगंथकइभेएण । गंथकइपाहुडजाणओ उवजुत्तो आगमभावगंथकई णाम । णोआगमभावगंथकई दुविहा सुद-णोसुदभावगंथकइभेएण। तत्थ सुदं तिविहं -लोइयं वेदिमं सामाइयं चेदि । तत्थ एक्केक्कं दुविहं दव्व-भावसुदभेएण । तत्थ व्वसुदस्स सद्दप्पयस्स तव्वदिदिरित्तणोआगमदव्वगंथकदीए परूवणा कायव्वा, भावाहियारे दव्वेण पओजणाभावादो । (इस्त्यश्व-तंत्र-कौटिल्य-वात्स्यायनादिबोधो लौकिकभावश्रुतग्रन्थः । द्वादशांगादिबोधो वैदिक नाम, स्थापना, द्रव्य और भावके भेदसे ग्रन्थकृति चार प्रकारकी है। इनमेंसे नाम व स्थापना ग्रन्थकृतियां सुगम हैं। द्रव्यग्रन्थकृति आगम और नोआगमके भेदसे दो प्रकारकी है। आगमद्रव्यग्रन्थकृति, नोआगम-शायकशरीर-द्रव्यग्रन्थकृति और नोआगमभावि द्रव्यग्रन्थकृति सुगम हैं, क्योंकि, उनका अर्थ बहुत वार कहा जा चुका है। जो तद्व्यतिरिक्त द्रव्यग्रन्थकृति है वह गूंथना, बुनना, वेष्टित करना और पूरना आर्दके भेदसे अनेक प्रकार की है। शंका - इनकी ग्रन्थ संज्ञा कैसे सम्भव है ? समाधान-नहीं, क्योंकि, जीव इन्हें बुद्धिसे आत्मामें गूथता है अतः उनके प्रन्थपना सिद्ध है। भावग्रन्थकृति आगम और नोआगम भावग्रन्धकृतिके भेदसे दो प्रकारकी है। ग्रन्थकृतिप्राभृतका जानकार उपयुक्त जीव आगमभावग्रन्थकृति कहलाता है। नोआगमभावप्रन्थकृति श्रुत और नोश्रुत भावग्रन्थकृतिके भेदसे दो प्रकारकी है। उनमेंसे श्रुत तीन प्रकारका है-लौकिक, वैदिक और सामायिक । इनमेंसे प्रत्येक द्रव्य और भाव श्रुतके भेदसे दो प्रकारकी है। उनमेंसे शब्दात्मक द्रव्यश्रुतकी तद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्यनन्थकृतिमें प्ररूपणा करनी चाहिये, क्योंकि, भावके अधिकारमें द्रव्यसे कोई प्रयोजन नहीं है। हाथी, अश्व, तन्त्र, कौटिल्य अर्थशास्त्र और वात्स्यायन कामशास्त्र आदि विषयक ज्ञान लौकिक भावभुत ग्रन्थकृति है। द्वादशांगादि विषयक बोध वैदिक भावश्रुत ग्रन्थकृति १काप्रती गंथदि ' इति पाठः। २ प्रतिषु ' -प्पयस्स करणं तव्वादि-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only .www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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