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________________ ३२. छक्खंडागमे वेयणाख 1१, १, ११. असंखेज्जगुणा । चउत्थीए कदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । तदियाए कदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । बिदियाए कदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । पढमाए कदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । एवं परत्थाणप्पाबहुगं जाणिदूण सव्वमग्गणासु णेयव्वं । सव्वपरत्थाणे सव्वत्थोवाओ मणुसिणीओ कदिसंचिदाओ । अवत्तव्वसंचिदाओ संखेज्जगुणाओ । णोकदिसंचिदाओ संखेज्जगुणाओ । मणुसा णोकदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । अवत्तव्वसंचिदा विसेसाहिया । तिरिक्खजोणिणीओ णोकदिसंचिदाओ असंखेज्जगुणाओ । अवत्तव्वसंचिदाओ विसेसाहियाओ । णेरइया णोकदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । अवत्तव्वसंचिदा विसेसाहिया । देवा णोकदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । अवतव्वसंचिदा विसेसाहिया । देवीओ णोकदिसंचिदाओ संखेज्जगुणाओ । अवत्तव्वसंचिदाओ विसेसाहियाओ । मणुसा कदिसंचिदा असंखेज्जगुणा। णेरइया कदिसंचिदा असंखेज्जगुणा । तिरिक्खजोणिणीओ कदिसंचिदाओ असंखेज्जगुणाओ । देवा कदिसंचिदा संखेज्जगुणा । देवीओ कदिसंचिदाओ संखेज्जगुणाओ। तिरिक्खणोकदिसंचिदा अणतगुणा । अवत्तव्वसंचिदा विसेसाहिया । कदिसंचिदा असंखेज्ज. गुणा । कुदो ? असंखेज्जपोग्गलपरियट्टकालभंतरसंचिदरासिग्गहणादो । सिद्धा कदिसंचिदा अणंतगुणा । अवत्तवसंचिदा संखेज्जगुणा । णोकदिसंचिदा संखेज्जगुणा त्ति। ............................ पृथिवीके कृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं। इनसे तृतीय पृथिवीके कृतिसंचित असंख्यात. गुणे हैं। इनसे द्वितीय पृथिवीके कृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं। इनसे प्रथम पृथिवीके कृतिसंचित असंख्यातगणे हैं। इस प्रकार परस्थान अल्प न अल्पबहुत्वको जानकर सब मार्गणाओंमें ले जाना चाहिये। सर्व परस्थान अल्पबहुत्वमें- मनुष्यनियां कृतिसंचित सबसे स्तोक हैं। इनसे अवक्तव्यसंचित संख्यातगुणी हैं। इनसे नोकृतिसंचित संख्यातगुणी हैं। इनसे मनुष्य नोकृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे तिर्येच योनिमती नोकृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं । इनसे नारकी नोकृतिसंचित असंख्यातगुणे है । इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे देव नोकृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं। इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे देवियां नोकृतिसंचित संख्यातगुणी हैं। इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे मनुष्य कृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं। इनसे नारकी कृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं। इनसे तिर्यच योनिमती कृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं । इनसे देव कृतिसंचित संख्यातगुणे हैं । इनसे देवियां कृतिसंचित संख्यातगुणी हैं। इनसे तिर्यंच नोकृतिसंचित अनन्तगुणे हैं। इनसे अवक्तव्यसंचित विशेष अधिक हैं। इनसे कृतिसंचित असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि, यहां असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन कालके भीतर संचित राशिका ग्रहण है। इससे सिद्ध कृतिसंचित अनन्तगुणे हैं। इमसे अवतव्यसंचित संख्यातगुणे हैं। इनसे नोति. खंत्रित संख्यातगुणे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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