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________________ १, १, १.] कदिअणियोगद्दारे मंगलायरणं समुज्झादभेएण तिविहो । कधमेदेसिं तिणं सरीराणं णिच्चेयणाणं जिणव्ववएसो ? ण, धणुहसहचारपज्जाएण तीदाणागय-वट्टमाणमणुआणं धणुहववएसो व्व जिणाहारपज्जाएण तीदाणागय-वट्टमाणसरीराणं दव्वजिणत्तं पडि विरोहाभावादो। आगमसण्णा अणुवजुत्तजीवदव्वस्सेव एत्थ किण्ण कदा, उवजोगाभावं पडि विसेसाभावादो ? ण, एत्थ आगमसंसकाराभावेण तदभावादो । भविस्सकाले जिणपज्जाएण परिणमंतओ भवियदव्वजिणो। भविस्सकाले जिणपाहुडजाणयस्स भूदकाले णादूण विस्सरिदस्स य णोआगमभवियदव्वजिणत्तं किण्ण इच्छिज्जदे ? ण, आगमदव्वस्स आगमसंसकारपज्जायस्स आहारत्तणेण तीदाणागद-वट्टमाणस्स णोआगमदव्वत्तविरोहादो। तवदिरित्तदव्वजिणो सच्चित्ताचित्त-तदुभयभेएण तिविहो । करह-हयहत्थीणं जेदारो सचित्तदव्वजिणा। हिरण्ण-सुवण्ण-मणि-मोत्तियादीणं जेदारो अचित्तदव्वजिणा । ससुवण्णकण्णादीणं जेदारो सचित्ताचित्तदव्वजिणा। आगम-णोआगममेएण दुविहो भावजिणो। .......................................... शायकशरीरनोआगमद्रव्य जिन भव्य, वर्तमान और समुज्झितके भेदसे तीन प्रकार है। शंका-इन अचेतन तीन शरीरोंके 'जिन' संज्ञा कैसे सम्भव है ? समाधान - नहीं, क्योंकि जिस प्रकार धनुषसहचाररूपपर्यायसे अतीत, अनागत और वर्तमान मनुष्योंकी 'धनुष' संज्ञा होती है, उसी प्रकार जिनाधाररूप पर्यायसे अतीत, अनागत और वर्तमान शरीरोंके द्रव्य जिनत्वके प्रति कोई विरोध नहीं है शंका-अनुपयुक्त जीवद्रव्यके समान यहां आगम संज्ञा क्यों नहीं की, क्योंकि, दोनों में उपयोगाभावकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है ? । समाधान -नहीं की, क्योंकि, यहां आगमसंस्कारका अभाव होनेसे उक्त संशाका अभाव है। भविष्य काल में जिन पर्यायसे परिणमन करनेवाला भावी द्रव्य जिन है। - शंका-भविष्य कालमें जिनप्राभृतको जाननेवाले व भूत कालमें जानकर विस्मरणको प्राप्त हुए जीवके नोआगमभाविद्रव्यजिनत्व क्यों नहीं स्वीकार करते ? । ___समाधान-नहीं, क्योंकि, आगमसंस्कार पर्यायका आधार होनेसे अतीत, अनागत व वर्तमान आगमद्रव्यके नोआगमद्रव्यत्वका विरोध है। __ तद्व्यतिरिक्तद्रव्य जिन सचित्त, अचित्त और तदुभयके भेदसे तीन प्रकार है। ऊंट, घोड़ा और हाथियोंके विजेता सचित्तद्रव्य जिन हैं। हिरण्य, सुवर्ण, मणि और मोती आदिकोंके विजेता अचित्तद्रव्य जिन हैं। सुवर्ण सहित कन्यादिकोंके विजेता सचित्ताचित्त द्रव्य जिन हैं । आगम और नोआगमके भेदसे भाव जिन दो प्रकार है। जिनप्राभृतका जानकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
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